उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।
 
करवा-चौथ | 4 नवंबर 2020
   
 

क्यों किया जाता है करवा-चौथ का व्रत?

‘करवा चौथ' के व्रत से तो हर भारतीय स्त्री अच्छी तरह से परिचित है! यह व्रत महिलाओं के लिए ‘चूड़ियों का त्योहार' नाम से भी प्रसिद्ध है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाने वाला यह करवा चौथ का व्रत, अन्य सभी व्रतों से कठिन माना जा सकता है। सुहागिन स्त्रियाँ पति पत्नी के सौहार्दपूर्ण मधुर संबंधों के साथ-साथ अपने पति की दीर्घायु की कामना के उद्देश्य से यह व्रत रखती है। इस व्रत में सुहागिन महिलाएं करवा रूपी वस्तु या कुल्हड़ अपने सास-ससुर या अन्य स्त्रियों से बदलती हैं। विवाहित महिलाएं पति की सुख-समपन्नता की कामना हेतु गणेश, शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। सूर्योदय से पूर्व तड़के ‘सरघी' खाकर सारा दिन निर्जल व्रत किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार व्रत का फल तभी है जब यह व्रत करने वाली महिला भूलवश भी झूठ, कपट, निंदा एवँ अभिमान न करे। सुहागन महिलाओं को चाहिए कि इस दिन सुहाग-जोड़ा पहनें, शिव द्वारा पार्वती को सुनाई गई कथा पढ़े या सुनें तथा रात्रि में चाँद निकलने पर चन्द्रमा को देखकर अर्घ्य दें, दोपरांत भोजन करें।

 

करवा-चौथ व्रत कथा

एक समय की बात है। पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले गए। किंही कारणों से वे वहीं रूक गये। उधर पांडवों पर गहन संकट आ पड़ा। शोकाकुल, चिंतित द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान के दर्शन होने पर अपने कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा। कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण मैं जानता हूँ, उसके लिए तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम करवा चौथ का व्रत रखना। शिव गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, सब ठीक हो जाएगा। द्रोपदी ने वैसा ही किया। उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सब चिंताएं दूर हो गईं।

कृष्ण ने दौपदी को इस कथा का उल्लेख किया था: भगवती पार्वती द्वारा पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना हेतु उत्तम विधि पूछने पर भगवान शिव ने पार्वती से ‘करवा चौथ' का व्रत रखने के लिए जो कथा सुनाई, वह इस प्रकार है - एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता धोबिन स्त्री अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। करवा का पति एक दिन नदी के किनारे कपड़े धो रहा था कि अचानक एक मगरमच्छ उसका पाँव अपने दाँतों में दबाकर उसे यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति से कुछ नहीं बन पड़ा तो वह करवा...करवा.... कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा। अपने पति की पुकार सुन जब करवा वहां पहुंची तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुँचाने ही वाला था। करवा ने मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगरमच्छ को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से अपने पति की रक्षा व मगरमच्छ को उसकी धृष्टता का दंड देने का आग्रह करने लगी- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगरमच्छ को उसके अपराध के दंड-स्वरूप आप अपने बल से नरक में भेज दें।

यमराज करवा की व्यथा सुनकर बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे यमलोक नहीं पहुँचा सकता। इस पर करवा बोली, "अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी।" उसका साहस देखकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। यमराज करवा की पति-भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि आज से जो भी स्त्री कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखेगी उसके पति की मैं स्वयं रक्षा करूंगा। उसी दिन से करवा-चौथ के व्रत का प्रचलन हुआ।

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वीरवती की कथा

प्राचीन समय में इंद्रप्रस्थ नामक एक शहर में वेद शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके सात पुत्र व एक पुत्री थी। पुत्री का नाम वीरवती था। वीरवती का इंद्रप्रस्थ वासी ब्राह्मण देव शर्मा के साथ विवाह हुआ। वीरवती को उसके भाई और भाभियाँ बहुत प्यार करती थीं। शादी के पहले वर्ष करवा चौथ के व्रत पर वह अपने मायके आई। नियमानुसार अपनी भाभियों के साथ 'करवा चौथ' का व्रत रखा। वीरवती की भाभियों ने करवा चौथ का व्रत पूर्ण विधि-विधान से निर्जल रहकर किया, मगर वीरवती सारे दिन की भूख-प्यास सहन न कर पाने से निढाल हो गई।

जब भाइयों को पता लगा कि उनकी प्रिय बहन वीरवती का भूख-प्यास से बुरा हाल हैं और अभी चंद्रमा के कहीं दर्शन नहीं हुए थे और बिना चंद्र दर्शन एवं अर्घ्य दिए वीरवती कुछ ग्रहण नहीं करेगी, इस पर भाइयों से वीरवती की हालत देखी नहीं गई। सांझ का धुंधलका चारों तरफ हो गया था। भाइयों ने योजना बनाई और काफी दूर जाकर बहुत-सी आग जलाई उसके आगे एक कपड़ा तानकर नकली चंद्रमा का आकार बनाकर वीरवती को दिखा दिया। वीरवती को कुछ पता नहीं था, अतः उसने उसी आग को चंद्रमा समझ लिया और अर्घ्य देकर अपना व्रत सम्पन्न कर लिया। व्रत के इस प्रकार खंडित होने से उसी वर्ष उसका पति सख्त बीमार पड़ गया। घर का सारा पैसा इलाज में चला गया और बीमारी ठीक नहीं हुई। घर का अन्न-धन खाली हो गया। पूरा वर्ष व्यतीत होने को आया करवा चौथ का व्रत निकट ही था। एक दिन इंद्रलोक की इंद्राणी ने वीरवती को स्वप्न में दर्शन दिए और उसके करवा चौथ के व्रत के खंडित होने का वृत्तांत सुनाया।

इंद्राणी ने कहा- वीरवती! इस बार तू यह व्रत पूरे विधि-विधान से रखना तेरा पति अवश्य ठीक हो जाएगा। घर में पहले की तरह धन-धान्य होगा। वीरवती ने वैसा ही किया और उसके प्रताप से उसका पति ठीक हो गया।

इच्छित वर घर की कामना हेतु इस व्रत को कुंवारी कन्याएँ भी करती हैं। वे गौरी माँ की पूजा-अर्चना करती हैं। चाँद को अर्घ्य देकर व्रत खोलना सुहागिनों के लिए है जबकि कन्याएँ तारा देखकर ही भोजन कर सकती हैं।

[भारत-दर्शन]

 
करवा-चौथ की महत्ता व कथा
करवा चौथ भारत में मुख्यत: उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इस पर्व पर विवाहित औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिये पूरे दिन का व्रत रखती हैं और शाम को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत समाप्त करती हैं। इस दिन भगवान शिव, पार्वती जी, गणेश जी, कार्तिकेय जी और चांद की पूजा की जाती हैं।

 
 
 

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