यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
 
करवा-चौथ की महत्ता व कथा
 
 

करवा चौथ भारत में मुख्यत: उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इस पर्व पर विवाहित औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिये पूरे दिन का व्रत रखती हैं और शाम को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत समाप्त करती हैं। इस दिन भगवान शिव, पार्वती जी, गणेश जी, कार्तिकेय जी और चांद की पूजा की जाती हैं।

शुरूआत और महत्व : इस पर्व की शुरूआत एक बहुत ही अच्छे विचार पर आधारित थी। मगर समय के साथ इस पर्व का मूल विचार कहीं खो गया और आज इसका पूरा परिदृश्य ही बदल चुका है।

पुराने जमाने में लड़कियों की शादी बहुत जल्दी कर दी जाती थी और उन्हें किसी दूसरे गांव में अपने ससुराल वालों के साथ रहना पड़ता था। अगर उसे अपने पति या ससुराल वालों से कोई परेशानी होती थी तो उसके पास कोई ऐसा नहीं होता था जिससे वो अपनी बात कह सके या मदद मांग सके। उसके अपने परिवार वाले और रिश्तेदार उसकी पहुंच से काफी दूर हुआ करते थे। उस जमाने में ना तो टेलीफोन होता था, ना बस और ना ही ट्रेन।

इस तरह एक रिवाज की शुरुआत हुई कि शादी के समय जब दुल्हन अपने ससुराल पहुंचेगी तो उसे वहां एक दूसरी औरत को दोस्त बनाना होगा जो उम्र भर उसकी बहन या दोस्त की तरह रहेगी। ये धर्म-सखी या धर्म-बहन के जैसा होगा। उनकी मित्रता एक छोटे से हिन्दू पूजन समारोह द्वारा शादी के समय ही प्रमाणित की जायेगी। एक बार दुल्हन और इस औरत के धर्म-सखी या धर्म-बहन बन जाने के बाद जिन्दगी भर इस रिश्ते को निभायेंगी। वे आपस में सगी बहनों जैसा बर्ताव करेंगी।

बाद में किसी तरह की परेशानी होने पर, चाहे वो पति या ससुराल वालों की तरफ से हो, ये दोनों औरतें आपस में बात कर सकती हैं या एक दूसरे की मदद कर सकती हैं। एक दुल्हन और उसकी धर्म-सखी (धर्म-बहन) के बीच इस मित्रता (सम्बन्ध) को एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।

इस तरह करवा चौथ की शुरुआत हुई। पति की भलाई के लिए पूजा और व्रत इसके बहुत बाद में शुरु हुआ। ऐसी आशा है कि इस पर्व की महत्ता को और बढ़ाने के लिए इसे पुरानी कथाओं के साथ जोड़ दिया गया।

मूलत: करवा चौथ इस धर्म-सखी (धर्म-बहन) के रिश्ते को फिर से नवीन रूप देने और मनाने का सालाना पर्व है। ये उस समय की एक सर्वश्रेष्ठ सामाजिक और सांस्कृतिक महानता थी जब दुनिया में बातचीत के तरीकों की कमी थी और आना-जाना इतना आसान नहीं था।

परम्परागत कथा (रानी वीरवती की कहानी): बहुत समय पहले वीरवती नाम की एक सुन्दर लड़की थी। वो अपने सात भाईयों की इकलौती बहन थी। उसकी शादी एक राजा से हो गई। शादी के बाद पहले करवा चौथ के मौके पर वो अपने मायके आ गई। उसने भी करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वो भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। वह बेताबी से चांद के उगने का इन्तजार करने लगी। उसके सातों भाई उसकी ये हालत देखकर परेशान हो गये। वे अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करते थे। उन्होंने वीरवती का व्रत समाप्त करने की योजना बनाई और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी। वीरवती ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर खाना खा लिया। रानी ने जैसे ही खाना खाया वैसे ही समाचार मिला कि उसके पति की तबियत बहुत खराब हो गई है।

रानी तुरंत अपने राजा के पास भागी। रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिले। पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है क्योंकि उसने नकली चांद देखकर अपना व्रत तोड़ दिया था। रानी ने तुरंत क्षमा मांगी। पार्वती देवी ने कहा, ''तुम्हारा पति फिर से जिन्दा हो जायेगा लेकिन इसके लिये तुम्हें करवा चौथ का व्रत कठोरता से संपन्न करना होगा। तभी तुम्हारा पति फिर से जीवित होगा।'' उसके बाद रानी वीरवती ने करवा चौथ का व्रत पूरी विधि से संपन्न किया और अपने पति को दुबारा प्राप्त किया।

इस पर्व से संबंधित अनेक कथाएं प्रसिध्द हैं जिनमें सत्यवान और सावित्री की कहानी भी बहुत प्रसिध्द है।

- क़ैश जौनपुरी, भारत

 
 
 
 
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