परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।
 

काव्य

जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

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टूटें न तार - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal

टूटें न तार तने जीवन-सितार के।

 
अरी भागो री भागो री गोरी भागो - भारत दर्शन संकलन

अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।

बाके कमर में बंसी लटक रही
और मोर मुकुटिया चमक रही

संग लायो ढेर गुलाल,
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।

इक हाथ पकड़ लई पिचकारी
सूरत कर लै पियरी कारी
इक हाथ में अबीर गुलाल

अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
भर भर मारैगो रंग पिचकारी

चून कारैगो अगिया कारी
गोरे गालन मलैगो गुलाल
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।

यह पल आई मोहन टोरी
और घेर लई राधा गोरी
होरी खेलै करैं छेड़ छाड़
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।

 
कल कहाँ थे कन्हाई  - भारत दर्शन संकलन

कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई
आओ -आओ कन्हाई न बातें बनाओ
कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई।

 
होली - मैथिलीशरण गुप्त - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

जो कुछ होनी थी, सब होली!
          धूल उड़ी या रंग उड़ा है,
हाथ रही अब कोरी झोली।
          आँखों में सरसों फूली है,
सजी टेसुओं की है टोली।
          पीली पड़ी अपत, भारत-भू,
फिर भी नहीं तनिक तू डोली !

- मैथिलीशरण गुप्त

 
पहले जनाब कोई... - अदम गोंडवी

पहले जनाब कोई शिगूफ़ा उछाल दो
फिर कर का बोझ क़ौम की गर्दन पर डाल दो

 
समस्या - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi

भूचाल आया
तो समस्या हुई खड़ी क्योंकि मेरी घरवाली
पलंग से नीचे गिर पड़ी
मैं उसके पास गया
और एक प्रश्न उठाया 'भाग्यवान,
भूचाल आने से तू गिरी
या तेरे गिरने से भूचाल आया?'

 
रंगो के त्यौहार में तुमने - राहुल देव

रंगो के त्यौहार में तुमने क्यों पिचकारी उठाई है?
लाल रंग ने कितने लालों को मौत की नींद सुलाई है।
टूट गयी लाल चूड़ियाँ,
लाली होंठो से छूट गयी।
मंगलसूत्र के कितने धागों की ये माला टूट गयी।
होली तो जल गयी अकेली,
तुम क्यों संग संग जलते हो।
होली के बलिदान को तुम,
कीचड में क्यों मलते हो?
मदिरा पीकर भांग घोटकर कैसा तांडव करते हो?
होलिका के बलिदान को बेशर्मी से छलते हो।
हर साल हुड़दंग हुआ करता है,
नहीं त्यौहार रहा अब ये।
कृष्ण राधा की लीला को भी,
देश के वासी भूल गए।
दिलों का नहीं मेल भी होता,
ना बच्चों का खेल रहा।
इस खून की होली को है,
देखो मानव झेल रहा।
माता बहने कन्या गोरी,
नहीं रंग में होती है।
अब होली के दिन को देखो,
चुपके चुपके रोती हैं।
गाँव गाँव और शहर शहर में,
अजब ढोंग ये होता है,
कहने को तो होली होती,
पर रंग लहू का चढ़ता है।
खेल सको तो ऐसे खेलो,
अबके तुम ऐसी होली।
हर दिल में हो प्यार का सागर,
हर कोई हो हमजोली।
रंग प्यार के खूब चढ़ाओ,
खूब चलाओ पिचकारी,
और भिगो दो बस प्यार में,
तुम अब ये दुनिया सारी।

- राहुल देव

 
प्रो. राजेश कुमार के दोहे - प्रो. राजेश कुमार

नव पल्लव इठलात हैं हर्ष न हिये समात।
हिल-डुल न्यौता देत हैं मौसम की क्या बात॥

 
फागुन का गीत  - केदारनाथ सिंह

गीतों से भरे दिन फागुन के ये गाए जाने को जी करता!
ये बाँधे नहीं बँधते, बाँहें--
रह जातीं खुली की खुली,
ये तोले नहीं तुलते, इस पर
ये आँखें तुली की तुली,
ये कोयल के बोल उड़ा करते, इन्हें थामे हिया रहता!

 
हरि संग खेलति हैं सब फाग - सूरदास के पद - सूरदास | Surdas

हरि संग खेलति हैं सब फाग।
इहिं मिस करति प्रगट गोपी: उर अंतर को अनुराग।।
सारी पहिरी सुरंग, कसि कंचुकी, काजर दे दे नैन।
बनि बनि निकसी निकसी भई ठाढी, सुनि माधो के बैन।।
डफ, बांसुरी, रुंज अरु महुआरि, बाजत ताल मृदंग।
अति आनन्द मनोहर बानि गावत उठति तरंग।।
एक कोध गोविन्द ग्वाल सब, एक कोध ब्रज नारि।
छांडि सकुच सब देतिं परस्पर, अपनी भाई गारि।।
मिली दस पांच अली चली कृष्नहिं, गहि लावतिं अचकाई।
भरि अरगजा अबीर कनक घट, देतिं सीस तैं नाईं।।
छिरकतिं सखि कुमकुम केसरि, भुरकतिं बंदन धूरि।
सोभित हैं तनु सांझ समै घन, आये हैं मनु पूरि।।
दसहूं दिसा भयो परिपूरन, सूर सुरंग प्रमोद।
सुर बिमान कौतुहल भूले, निरखत स्याम बिनोद।।

 
आओ होली खेलें संग - रोहित कुमार 'हैप्पी'

कही गुब्बारे सिर पर फूटे
पिचकारी से रंग है छूटे
हवा में उड़ते रंग
कहीं पर घोट रहे सब भंग!

 
बरस-बरस पर आती होली - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

बरस-बरस पर आती होली,
रंगों का त्यौहार अनूठा
चुनरी इधर, उधर पिचकारी,
गाल-भाल पर कुमकुम फूटा
लाल-लाल बन जाते काले,
गोरी सूरत पीली-नीली,
मेरा देश बड़ा गर्वीला,
रीति-रसम-ऋतु रंग-रगीली,
नीले नभ पर बादल काले,
हरियाली में सरसों पीली !

 
होली पद  - जुगलकिशोर मुख्तार

ज्ञान-गुलाल पास नहिं, श्रद्धा-रंग न समता-रोली है ।
नहीं प्रेम-पिचकारी कर में, केशव शांति न घोली है ।।
स्याद्वादी सुमृदंग बजे नहिं, नहीं मधुर रस बोली है ।
कैसे पागल बने हो चेतन ! कहते ‘होली होली है' ।।

 
सदुपदेश | दोहे  - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही

बात सँभारे बोलिए, समुझि सुठाँव-कुठाँव ।
वातै हाथी पाइए, वातै हाथा-पाँव ॥१॥

 
अभी होली दिवाली | ग़ज़ल - शुभम् जैन

अभी होली दिवाली साथ में रमज़ान देखा है,
तराशा हुस्न का नायाब वो एवान देखा है।।

हवाओं से चिरागों को बचाना और होता है,
घरों को तोड़ देता है कभी तूफ़ान देखा है?

सुने मैंने सभी किस्से अभी उम्मीद है बाकी,
अभी जिंदा ज़माने में वफ़ा ईमान देखा है।।

किताबों में न हो मौजूद वो नाकामियाँ मेरी,
मुझे देखो,कभी हारा हुआ इंसान देखा है?

'शुभम्' वो रोज़ आते थे कभी मेरी भी गलियों में,
यहाँ थी रौशनी तुमने जिसे वीरान देखा है।।

 
मन में रहे उमंग तो समझो होली है | ग़ज़ल - गिरीश पंकज

मन में रहे उमंग तो समझो होली है
जीवन में हो रंग तो समझो होली है

 
हर कोई है मस्ती का हकदार सखा होली में  - डॉ. श्याम सखा श्याम

हर कोई है मस्ती का हकदार सखा होली में
मौसम करता रंगो की बौछार सखा होली में

 
काका हाथरसी की कुंडलियाँ - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

पत्रकार दादा बने, देखो उनके ठाठ।
कागज़ का कोटा झपट, करें एक के आठ।।
करें एक के आठ, चल रही आपाधापी ।
दस हज़ार बताएं, छपें ढाई सौ कापी ।।
विज्ञापन दे दो तो, जय-जयकार कराएं।
मना करो तो उल्टी-सीधी न्यूज़ छपाएं ।।

 
तीन कवयित्रियां - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

कवि सम्मेलन के मंच पर कल रात,
तीन कवयित्रियां कर रहीं थी बात।

 
ताजमहल - अरुण जैमिनी

इंटरव्यू देने पहुँचा
हरियाणे का एक युवा बेरोजगार
एक पोस्ट के लिए
आए थे अस्सी उम्मीदवार
किसे रखना है, यह बात तय थी
इसलिए चयनकर्ताओं के सवालों में
न सुर, न ताल और न लय थी

 
तीन तरह के लोग - प्रदीप चौबे

इस देश में
तीन तरह के लोग रहते है
एक-- खून-पसीना बहाने वाले,
दूसरे-- पसीना बहाने वाले,
तीसरे-- खून बहाने वाले,
खून-पसीने वाला
रिक्शा चलाता है,
पसीने वाला
घर चलाता है
और खून बहाने वाला
देश चलाता है।
रिक्शेवाला
मजदूर होता है,
घरवाला
मजबूर होता है
और देश चलाने वाला
मशहूर होता है।

 
पापा-आपा - अल्हड़ बीकानेरी

छरहरी काया मेरी जाने
कहाँ छूट गई
छाने लगा मुझ पे मोटापा
मेरे राम जी

 
फगुनिया दोहे - डॉ सुशील शर्मा

फागुन में दुनिया रँगी, उर अभिलाषी आज।
जीवन सतरंगी बने, मन अंबर परवाज॥

 
चुम्मन चाचा की होली | कुंडलियाँ - डॉ सुशील शर्मा

होली में पी कर गए,चाचा चुम्मन भंग।
नाली में उल्टे पड़े, लिपटे कीचड़ रंग॥
लिपटे कीचड़ रंग,नहीं सुध-बुध है तन की।
लटके झटके नाच,खूब कर ली है मन की॥
लिए हाथ में रंग, आज चाची भी बोली।
हे प्राणों के नाथ,खेलते आओ होली॥

 
नये जीवन का गीत - आरसी प्रसाद सिंह 

मैंने एक किरण माँगी थी, तूने तो दिनमान दे दिया।
चकाचौंध से भरी चमक का जादू तड़ित्-समान दे दिया।
मेरे नयन सहेंगे कैसे यह अमिताभा, ऐसी ज्वाला?
मरुमाया की यह मरीचिका ? तुहिनपर्व की यह वरमाला?
हुई यामिनी शेष न मधु की, तूने नया विहान दे दिया।
मैंने एक किरण माँगी थी, तूने तो दिनमान दे दिया।

 
मैं न हारा | गीत - मन्जू लाल द्विवेदी शील

राह हारी मैं न हारा
थक गये पथ धूल के--
उड़ते हुए रज-कण घनेरे ।
पर न अब तक मिट सके हैं,
वायु में पदचिह्न मेरे।
जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा।
राह हारी मैं न हारा

 
होली की रात | Jaishankar Prasad Holi Night Poetry - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad

बरसते हो तारों के फूल
छिपे तुम नील पटी में कौन?
उड़ रही है सौरभ की धूल
कोकिला कैसे रहती मीन।

 
ज़माना आ गया... - बलबीर सिंह रंग

ज़माना आ गया रुसवा‌इयों तक तुम नहीं आये
जवानी आ ग‌ई तन्हा‌इयों तक तुम नहीं आये

 
एक गहरा दर्द... | ग़ज़ल - अश्वघोष

एक गहरा दर्द पलता जा रहा है
आदमी का दम निकलता जा रहा है

 
किस्से नहीं हैं ये किसी... -  ज़हीर कुरेशी

किस्से नहीं हैं ये किसी 'राँझे' की 'हीर' के
ये शेर हैं-- अँधेरों से लड़ते 'ज़हीर' के

 
हमें अपनी हिंदी... | ग़ज़ल - देवी नागरानी

हमें अपनी हिंदी ज़बाँ चाहिये
सुनाए जो लोरी वो माँ चाहिये

कहा किसने सारा जहाँ चाहिये
हमें सिर्फ़ हिन्दोस्ताँ चाहिये

 

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