मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
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जब तक माँ सिर पै रही बेटा रहा जवान।उठ साया जब तै गया, लगा बुढ़ापा आन॥#
माँ अपनी की आ गई 'रोहित' जब भी याद।उठ पौधों को दे दिया, हमने पानी-खाद॥#
माँ सपने में आ मुझे, पूछे मेरा हाल।दूजी दुनिया में गई, फिर भी मेरा ख्याल॥#
जीवन पूरा ला दिया, पाला सब परिवार।आज उसे मिलती नहीं, घर में रोटी चार॥#
जीवन भर देती रही, जी भर जिसे दुलार।माँ अपनी को दे रहा, बेटा वही उधार॥
- रोहित कुमार 'हैप्पी'
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