शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
 
लाल देह लाल रंग, रंग लियो बजरंग (काव्य)     
Author:आराधना झा श्रीवास्तव

बानर मैं मूढ़मति, दोसर न मोर गति।
दया करो सीतापति, नयन तरसते ।।१।।

राम नाम रहे जपि, मगन मगन कपि।
मुदित हृदयँ हरि, भाव हैं बरसते ।।२।।

कृपा करो रघुबीर, हनुमत हैं अधीर।
कर जोरि राह देखि, दुख हैं पसरते।।३।।

एक पल जुग भया, मिलिहिं न प्रभु दया।
भगत को अपने क्यों, प्रभु हैं बिसरते ।।४।।

राम हियँ सिय बसी, चमके ज्यों नभ ससि।
प्रभु बिनु हनुमत, सिसु से कलपते ।।५।।

चकित भए कपीस, सिय से माँगै आसिष।
केहि विधि भगवन, हृदयँ पिघलते ।।६।।

सुनु सुत बजरंग, सेंदुर के लाल रंग।
लाल लाल सेंदुर से, प्रभु मो से बँधते ।।७।।

व्यथित हृदय भए, सेंदुर से रंग गए।
राम राम राम मय, मनि से दमकते ।।८।।

जेहि विधि राम मिलिं, तेहि विधि मोहि भलि।
सोचि-सोचि हनुमत, हृदयँ हरषते ।।९।।

अरुधरि लाल रंग, रंग लियो बजरंग।
अंग अंग रंग डारि, प्रेम से छलकते ।।१०।।

रुप देखि बोली सिय, होउ तुम राम प्रिय।
लाल रंग में हे सुत, रुप हौं निखरते ।।११।।

लाल देह लाल रंग, भगति को न्यारो ढंग।
भोले-भाले बजरंग, प्रेम भाव रंगते ।।१२।।

राम प्रिय हनुमंत, जपि रहि साधु-संत।
मिलिहिं कृपा जे, राम नाम जपते ।।१३।।

कलिजुग में महान, राम भक्त हनुमान।
संकटमोचन प्रभु, भगति में रमते ।।१४।।

नाम ले जे हुनकर, प्रेम भाव बुनकर।
मन मोती चुनकर, सब पाप कटते ।।१५।।

मंगल का दिन भाए, तेल सेंदुर लगाए।
शनि कोप से बचाए, संकट उबरते ।।१६।।

जहँ जहँ रघुवीर, तहँ तहँ महावीर ।
रोम रोम राम बसैं, राम नाम भजते ।।१७।।

मन भक्ति भावना सो, करहिं जौं साधना तौ।
कहत ‘आराधना’ वो, पार हैं उतरते ।।१८।।

राम नाम सुमिरन करत, अंजनिसुत हनुमान।
राम नामहि पार लगैं, राम हैं कृपानिधान ।।दोहा।।

।।इति आराधनाकृत हनुमंत छंदावली समाप्तम्।।

- आराधना झा श्रीवास्तव

वीडियो प्रस्तुति देखें
https://youtu.be/wL0uCldtF0A

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