वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 

ग़ज़ल  (काव्य)

Author: शशिकान्त मिश्रा

क्यों भूल गए हमको रिश्ता तो पुराना था,
एक ये भी ज़माना है, एक वो भी ज़माना था!

रंगीन फिजायें थी, और शोक अदाएं थी,
जज़्बो पे जवानी था और मौसम भी सुहाना था !

सीने से लगाया था, पलकों पे सजाया था,
मालूम था न मुझको, तुम्हें छोड़ के जाना था !

क्यों हमसे ख़फ़ा हो तुम, क्यों हमसे जुदा हो तुम,
क्या जुर्म हुआ हमसे, इतना तो बताना था !

- शशिकान्त मिश्रा
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