समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।
 

मलूकदास के दोहे (काव्य)

Author: मलूकदास

भेष फकीरी जे करें, मन नहिं आवै हाथ ।
दिल फकीर जे हो रहे, साहेब तिनके साथ ॥

 

जो तेरे घर प्रेम है, तो कहि कहि न सुनाव ।
अंतर्जामी जानिहै, अंतरगत का भाव ॥

 

हरी डारि ना तोड़िए, लागै छूरा बान ।
दास मलूका यों कहै, अपना-सा जिव जान ॥

 

दया-धर्म हिरदै बसे, बोले अमरत बैन ।
तेई ऊँचे जानिए, जिनके नीचे नैन ॥

- मलूकदास

 

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