मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 

अभी होली दिवाली | ग़ज़ल (काव्य)

Author: शुभम् जैन

अभी होली दिवाली साथ में रमज़ान देखा है,
तराशा हुस्न का नायाब वो एवान देखा है।।

हवाओं से चिरागों को बचाना और होता है,
घरों को तोड़ देता है कभी तूफ़ान देखा है?

सुने मैंने सभी किस्से अभी उम्मीद है बाकी,
अभी जिंदा ज़माने में वफ़ा ईमान देखा है।।

किताबों में न हो मौजूद वो नाकामियाँ मेरी,
मुझे देखो,कभी हारा हुआ इंसान देखा है?

'शुभम्' वो रोज़ आते थे कभी मेरी भी गलियों में,
यहाँ थी रौशनी तुमने जिसे वीरान देखा है।।


- शुभम् जैन

ई-मेल: sjainrpr@gmail.com

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