मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 

किस्से नहीं हैं ये किसी... (काव्य)

Author: ज़हीर कुरेशी

किस्से नहीं हैं ये किसी 'राँझे' की 'हीर' के
ये शेर हैं-- अँधेरों से लड़ते 'ज़हीर' के

मैं आम आदमी हूँ--तुम्हारा ही आदमी
तुम काश, देख पाते मेरे दिल को चीर के

सब जानते हैं जिसको 'सियासत' के नाम से
हम भी कहीं निशाने हैं उस खास तीर के

चिंतन ने कोई गीत लिखा या ग़ज़ल कही
जन्में हैं अपने आप ही दोहे 'कबीर' के

हम आत्मा से मिलने को व्याकुल रहे
मगर बाधा बने हुए हैं ये रिश्ते शरीर के

- ज़हीर कुरेशी

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