मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 

एक गहरा दर्द... | ग़ज़ल (काव्य)

Author: अश्वघोष

एक गहरा दर्द पलता जा रहा है
आदमी का दम निकलता जा रहा है

सज रही है, बस्तियाँ बुलडोजरों से
देश का नक्शा बदलता जा रहा है

हाथ उनके खून में भीगे हुए है
फ़र्ज का दामन फिसलता जा रहा है

बर्फ की इन सिल्लियों को क्या पता है
चेतना का जिस्म गलता जा रहा है

ऐ मेरे हमराज़! बढ़कर रोक ले
रोशनी को, तम निगलना जा रहा है

-अश्वघोष

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