साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
 

ज़माना आ गया... (काव्य)

Author: बलबीर सिंह रंग

ज़माना आ गया रुसवा‌इयों तक तुम नहीं आये
जवानी आ ग‌ई तन्हा‌इयों तक तुम नहीं आये

धरा पर थम ग‌ई आँधी, गगन में काँपती बिजली
घटा‌एँ आ ग‌यी अमरा‌इयों तक तुम नहीं आये

नदी के हाथ निर्झर को मिली पाती समंदर को
सतह भी आ ग‌ई गहरा‌इयों तक तुम नहीं आये

किसी को देखते ही आपका आभास होता है
निगाहें आ ग‌यीं परछा‌इयों तक तुम नहीं आये

समापन हो गया नभ में सितारों की सभा‌ओं का
उदासी आ ग‌ई अंगड़ा‌इयों तक तुम नहीं आये

न शमादा हैं न परवाने ये क्या 'रंग' है महफ़िल
कि मातम आ गया शहना‌इयों तक तुम नहीं आये

-बलबीर सिंह रंग
[साभार - हिन्दी की बेहतरीन ग़ज़लें, भारतीय ज्ञानपीठ]

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