समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।
 

छन-छन के हुस्न उनका | ग़ज़ल (काव्य)

Author: निज़ाम-फतेहपुरी

छन-छन के हुस्न उनका यूँ निकले नक़ाब से।
जैसे निकल रही हो किरण माहताब से।।

पानी में पाँव रखते ही ऐसा धुआँ उठा।
दरिया में आग लग गई उनके शबाब से।।

जल में ही जल के मछलियाँ तड़पें इधर-उधर।
फिर भी नहा रहे न डरें वो आज़ाब से।।

तौहीन प्यार की है करे बेवफ़ा से जो।
धोका है आस रखना वफ़ा की जनाब से।।

जी भर पिलाई साक़ी ने कुछ भी नहीं चढ़ी।
हाथों से उनके पीते नशा छाया आब से।।

बचपन की याद फिर से हमें आज आ गई।
जब से मिले हैं फूल ये सूखे किताब से।।

घुट-घुट निज़ाम अच्छा नहीं जीना प्यार में।
खुलकर जियो ये ज़िंदगी अपने हिसाब से।।

निज़ाम-फतेहपुरी
ई-मेल: nizamfatehpuri@gmail.com
ग्राम व पोस्ट मदोकीपुर
ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

निज़ाम-फतेहपुरी

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