मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 

भला क्या कर लोगे? (काव्य)

Author: डॉ. शैलेश शुक्ला

है हर ओर भ्रष्टाचार, भला क्या कर लोगे
तुम कुछ ईमानदार, भला क्या कर लोगे ?

दूध में मिला है पानी या पानी में मिला दूध
करके खूब सोच-विचार, भला क्या कर लोगे ?

ईमान की बात करना नासमझी मानते लोग
सब बन बैठे समझदार, भला क्या कर लोगे ?

विकास की नैया फंसी पड़ी स्वार्थ के भंवर में
नामुमकिन है बेड़ा पार,भला क्या कर लोगे ?

इंसाफ के नाम पर बस तारीख पर तारीख
है लंबा बहुत इंतजार, भला क्या कर लोगे ?

फोड़ लोगे सर अपना मार-मार कर दीवारों पर
चलो, छोड़ो, बैठो यार, भला क्या कर लोगे ?

-डॉ. शैलेश शुक्ला
 दोणिमलै टाउनशिप, बेल्लारी, कर्नाटक
  ईमेल : poetshailesh@gmail.com

 

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