उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।
 

मिलती हैं आजकल  (काव्य)

Author: गुलशन मदान की गज़ल

मिलती हैं आजकल उन्हें ऊँचाइयां मियां
जिनसे बहुत ही दूर हैं अच्छाइयां मियां

मुझको वहाँ के लागे सब रोते हुए मिले
बजती थी कल तलक जहां शहनाइयां मियां

तारीकियों में साथ चलने की किसे कहें
चलती नहीं हैं साथ जब परछाइयां मियां

रख दो किताबें बांध कर तुलसी कबीर की
पढ़ता है कौन आजकल चौपाइयां मियां

उनकी सलीबो-दार ही ईनआम में मिले
करते रहे जो उम्र भर अच्छाइयां मियां

सागर की सतह से ही जो आए हैं लौट कर
उनका है दावा देखी हैं गहराइयां मियां

अब दूर ले चलो कहीं दुनियां की भीड़ में
'गुलशन' की भाती है फ़कत तन्हाइयां मियां।

--गुलशन मदान, कैथल, हरियाणा, भारत   
   [गुलशन मदान की चर्चित गज़लें]

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश