मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 

सुन ले मेरा गीत (काव्य)

Author: बहज़ाद लखनवी

सुन ले मेरा गीत! प्यारी, सुन ले मेरा गीत!
प्रेम यह मुझको रास न आया, तेरी क़सम बेहद पछताया,
करके तुझ से प्रीत!

खाक हुए हम रोते रोते, प्रेम में व्याकुल होते होते,
प्रीत की है यह रीत।

प्रेम में रोना ही होता है, जीवन खोना ही होता है,
हार हो या हो जीत!

-‘बहज़ाद' लखनवी 
[1 जनवरी 1900, लखनऊ, भारत - 10 अक्टूबर 1974, कराची, पाकिस्तान]

 

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