उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।
 

न हारा है इश्क़-- (काव्य)

Author: ख़ुमार बाराबंकवी

न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है

सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है

चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं
नया है ज़माना नई रौशनी है

अरे ओ जफ़ाओं पे चुप रहने वालो
ख़मोशी जफ़ाओं की ताईद भी है

मिरे राहबर मुझ को गुमराह न कर दे
सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है

'ख़ुमार'-ए-बला-नोश कि तू और तौबा
तुझे ज़ाहिदों की नज़र लग गई है

-ख़ुमार बाराबंकवी

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश