मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 

हर एक चेहरे पर | ग़ज़ल (काव्य)

Author: शांती स्वरूप मिश्र

हर एक चेहरे पर, मुस्कान मत खोजो !
किसी के नसीब का, अंजाम मत खोजो !

डूब चुका है जो गन्दगी के दलदल में
रहने दो यारो, उसमें ईमान मत खोजो !

फंस गया है जो मज़बूरियों की क़ैद में
उसके दिल में दबे, अरमान मत खोजो !

जो पराया था आज अपना है तो अच्छा
उसमें अब वो पुराने, इल्ज़ाम मत खोजो !

आदमी बस आदमी है इतना समझ लो
हर किसी में अपना, भगवान मत खोजो !

ये इंसान तो ऐबों का खज़ाना है "मिश्र"
उसके दिल से कोई, रहमान मत खोजो !

-शांती स्वरूप मिश्र
ई-मेल: mishrass1952@gmail.com

 

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