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हर एक चेहरे पर | ग़ज़ल (काव्य) |
Author: शांती स्वरूप मिश्र
हर एक चेहरे पर, मुस्कान मत खोजो !
किसी के नसीब का, अंजाम मत खोजो !
डूब चुका है जो गन्दगी के दलदल में
रहने दो यारो, उसमें ईमान मत खोजो !
फंस गया है जो मज़बूरियों की क़ैद में
उसके दिल में दबे, अरमान मत खोजो !
जो पराया था आज अपना है तो अच्छा
उसमें अब वो पुराने, इल्ज़ाम मत खोजो !
आदमी बस आदमी है इतना समझ लो
हर किसी में अपना, भगवान मत खोजो !
ये इंसान तो ऐबों का खज़ाना है "मिश्र"
उसके दिल से कोई, रहमान मत खोजो !
-शांती स्वरूप मिश्र
ई-मेल: mishrass1952@gmail.com