उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।
 

ख़ाक (काव्य)

Author: अमर मंडल

था मैं भी पेड़,
अब हूँ धरा में पड़ा सा,
अब धूल हो जाऊंगा,
धूल मे पड़ा-पड़ा,
सहा था सूरज की तपन,
अब हल्की चिंगारी राख़ सा कर जाएगी,
ख़ाक ने जना था मुझे,
अब ख़ाक ख़ाक सा कर जाएगी।

- अमर मंडल
amarmandal250@gmail.com

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