मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 
डॉ शुभंकर मिश्र (विविध)     
Author:लछमन गुन गाथा

[‘लछमन गुन गाथा’ नामक पुस्तक के लोकार्पण पर]

हम सब जानते हैं कि रामायण और महाभारत हमारी सभ्यता और संस्कृति के कालजयी महाकाव्य हैं और सनातनी संस्कृति के सर्वाधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय ग्रन्थ माने जाते रहे हैं। ये महनीय ग्रंथ सच्चे अर्थों में हमारी संस्कृति, आचार-विचार, भावनाओं-संवेदनाओं के संवाहिका रहे हैं।

राम कथा का प्रसंग आते ही हठात हम सब को रामचरितमानस की उस चौपाई का स्मरण हो उठता है, जो भक्त-वत्सल, कृपालु प्रभु श्रीराम की स्तुति में है। चौपाई है--

मंगल भवनअमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजर बिहारी...

मंगल करने वाले और अमंगल को दूर करने वाले दशरथ नंदन श्रीराम, हम सब पर अपनी कृपा करें।

प्रभु श्रीराम ने राक्षसों के राजा रावण का वध किया और धर्म की पुनर्स्थापना की। परवर्ती संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य पर इस कालजयी महाकाव्य का सर्वाधिक प्रभाव रहा हैI विदित ही है कि बहुश्रुत, बहुपठित और सर्वथा अनुकरणीय रामकथा को लेकर परवर्ती काल में अनेकों 'रामायण' की रचना की गई है।

देववाणी संस्कृत में निबद्धित वाल्मीकि रामायण में महर्षि नारद से प्रश्न के माध्यम से राम को सुस्पष्ट शब्दों में व्याख्यायित किया गया हैI नारद के समक्ष प्रश्न उपस्थित है कि “सम्प्रति इस लोक में ऐसा कौन मनुष्य है, जो गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी और दृढ़व्रत होने के साथ-साथ सदाचार से युक्त है, सब प्राणियों का हितकारक है, विद्वान है और समर्थ और प्रियदर्शन भीI” महर्षि नारद के व्याज से महर्षि वाल्मीकि भावविभोर मुद्रा में कहते हैं-- ”इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न प्रभु श्री राम इन सर्वादि गुणों से सम्पन्न हैं।”

भारतीय संस्कृति में हमारे राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं I रमन्ते योगिनः यस्मिन इति रामः I जी हाँ, योगीगण जहाँ रमण करते हैं, भ्रमण करते हैं, विचरण करते हैं, वहीं तो राम हैं I सो हमारे राम रमणीय हैं, स्पृहणीय हैं, जन-जन में वंदनीय हैं और प्रातः स्मरणीय हैं I

यह सच है कि हमारे इतिहास के ग्रंथों में राम एक विजेता के रूप में उपन्यस्त रहे हैं। पर यहाँ उससे भी कहीं बड़ा सत्य यह है कि राम वैश्विक शांति के प्रतिष्ठापक रहे हैं I और फिर न केवल राम बल्कि रामायण के वे सभी पात्र, चाहे वे मुख्य पात्र हों या फिर गौण ही क्यों न, सभी अपने-अपने धर्म, अपने दायित्वों का पालन करने के लिए भारतीय समाज में सुविख्यात रहे हैं I चाहे एक आदर्श पुत्र या पति का प्रश्न हो, या प्रजा-कल्याण या भ्रातृ-वात्सल्यता का, रामकथा का हर एक पात्र मानो हमें जीवन जीने का एक गूढ़ मंत्र प्रदान करता है, किकर्तव्यविमूढ़ता का परिहार कैसे किया जाए, इसका सटीक मार्ग दिखाता है और हमें कर्त्तव्य और अकर्तव्य के मध्य विभेद करने का विवेक प्रदान करता हैI

भारत रामकथा का सृजनगृह रहा है, जहाँ पर रामकथा के सभी पात्रों का चित्रण लोकजीवन में अनुकरण के लिए हुआ है। रामकथा भातृ-प्रेम का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस कथा में राम के अनुजद्वय श्री भरत और श्री लक्ष्मण ने भारतीय समाज में समरसता और सहिष्णुता के उस ताने-बाने को बखूबी प्रदर्शित किया है, जो समाज में कुटुंबीय सामंजस्य और पारिवारिक दायित्व के निर्वहन के लिए नितांत अपेक्षित है। आप सब अवगत ही हैं कि बड़े भाई के प्रेम के कारण लक्ष्मण उनके साथ कैसे वन चले जाते हैं और भरत अयोध्या की राजगद्दी पर अपने बड़े भाई का अधिकार समझ, स्वयं न बैठ राम की पादुका को उस पर प्रतिष्ठित करते हैंI

वाल्मीकि रामायण से प्रेरित होकर गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी, जो हिंदी की उपभाषा-सहभाषा है, में रामचरितमानस जैसे विशालकाय महाकाव्य की रचना की I 'ग्राम्य गिरा' के पक्षधर तुलसीदास कृत रामचरितमानस में रामकथा के माध्यम से कवि का मूल उद्देश्य नैतिकता एवं सदाचार की शिक्षा देना रहा है । कहना नहीं होगा कि राम कथा पर रचित अद्भुत ग्रंथ रामचरितमानस मानव-धर्म के सिद्धान्तों के प्रयोगात्मक पक्ष का आदर्श रूप प्रस्तुत करने वाला एक स्पृहणीय, महनीय ग्रन्थ रहा है।

रामायण की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से सहज रूप से लगता है कि इसकी संख्या तीन सौ से लेकर एक हजार तक है और यह विविध रूपों और शीर्षकों में विद्यमान है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्व साहित्य में इतने विशाल एवं विस्तृत रूप में राम के अलावा किसी और चरित्र का इतनी श्रद्धा से वर्णन नहीं किया गया है। वर्तमान में प्रचलित बहुत-से राम-कथानकों में आर्ष रामायण, अद्भुत रामायण, कृत्तिवास रामायण, मैथिल रामायण, सर्वार्थ रामायण, संजीवनी रामायण, कम्ब रामायण, भुशुण्डि रामायण, अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण, आदि कुछ उल्लेखनीय नाम हैं। वैश्विक स्तर पर भी तिब्बती रामायण, पूर्वी तुर्किस्तान की खोतानी रामायण, इंडोनेशिया की ककबिन रामायण आदि-आदि भी रामचरित्र के आदर्शों का बखूबी बखान करता है।

वाल्मीकि रामायण से प्रेरित तुलसीदास कृत रामचरितमानस में रामकथा के माध्यम से कवि का ध्येय नैतिकता एवं सदाचार की शिक्षा देना रहा है। यदि देखें तो रामचरितमानस विश्वजनीन आचारशास्त्र का संबोधक एक विलक्षण ग्रन्थ है, जो मानव धर्म के सिद्धान्तों के प्रयोगात्मक पक्ष का एक अभिनव रूप प्रस्तुत करता है।

आज हम सब रामायण सेंटर, मॉरीशस द्वारा प्रकाशित रामचरितमानस से अनुप्राणित ‘लछमन गुन गाथा’ नामक पुस्तक के लोकार्पण पर एकत्रित हैं। रामायण सेंटर मॉरीशस के संस्‍थापक एवं पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय राजेंद्र अरुणजी ने रामायण के विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार एवं श्रीराम परिवार के सभी पुरुष पात्रों पर पुस्तक लिखने का एक युगांतकारी स्वप्न देखा था, जो उनकी इहलौकिक अनुपस्थिति में भी लगातार फल-फूल रहा है। वे इहलोक में रामकथा के मुख्य पुरुष पात्रों, जो श्रीराम से सकारात्मक एवं अभिन्न रूप से जुड़े हैं, उनमें भरत, राजा दशरथ और परम भक्त हनुमान पर अपना विलक्षण सृजनात्मक योगदान दे चुके हैं । लक्ष्मणजी और शत्रुघ्न पर उनके अवशिष्ट कार्य को आगे बढ़ाते हुए, उनकी अर्द्धांगिनी श्रीमती अरुणजी ने ‘लछमन गुन गाथा’ का प्रणयन किया ताकि श्रीराम परिवार के सभी पुरुष पात्रों पर रामायण सेंटर का सृजनात्मक योगदान वैश्विक साहित्य के फलक पर प्रतिष्ठापित हो सके । आदरणीया विनोद बाला अरुणजी को उनके इन सत्प्रयासों के लिए साधुवाद, कोटिशः नमन और हार्दिक आभारI

ध्यातव्य है कि रामायण का शाब्दिक अर्थ है राम का मंदिर, राम का घर, राम का आलय । वहीं रामचरितमानस को हम राम के चरित्र का सरोवर या फिर रामदर्शन कहते हैं । इन दोनों में स्थूल अंतर यह है कि जहाँ वाल्मीकी के राम मानवीय भावनाओं के संतुलित, समेकित रूप हैं, वहीं तुलसी के राम समाज के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम हैं I

और अब प्रसंग की बात । लक्ष्मण शब्द का उच्चारण करते ही हमारे मनोमस्तिष्क में एक जो सामान्य बोध होता है, वह है उनका क्रोधी व्यक्तित्व । an angry young man जिसे बात-बात पर क्रोध आता हो I परन्तु यह धारणा तब हठात निर्मूल सिद्ध हो जाती है जब पाठक ‘लछमन गुन गाथा’ के माध्यम से उनके चरित्र की गहराइयों में जाते हैं और उनकी विशिष्टताओं को समझते हैं I

‘लछमन गुन गाथा’ में राम और लक्ष्मण का जीवन, प्रेम और विश्वास के अटूट सूत्र से बँधा हुआ है, जहाँ किसी प्रकार के दुराव, छिपाव और अलगाव की कोई गुंजाइश नहीं । विश्व इतिहास में ऐसा चरित्र शायद ही मिले, जिसने अपने अग्रज की सेवा में अपने अस्तित्व का प्रभु श्रीराम के चरणों में पूर्णतया विसर्जन कर अपने जीवन की धन्यता और सार्थकता मानता है । 

रघुपति कीरति बिमल पताका।
दंड समान भयउ जस जाका॥

जी हाँ, गोस्वामी तुलसीदास के लक्ष्मण श्रीराम की कीर्ति–पताका दंड हैं ।

‘लछमन गुन गाथा’ में लक्ष्मण के गुणों का बहुआयामी और प्रभावशाली वर्णन है, जिसका फलक विस्तृत है, विशाल है । कहना नहीं होगा कि पुस्तक की शैली सूत्रात्मक है और सर्वोपरि काव्यात्मक । ‘लछमन गुन गाथा’ का प्रत्येक अध्याय, इस मायने में विशिष्ट है कि विदुषी लेखिका श्रीमती अरुण ने इसके हरेक अध्याय का आरंभ तुलसी की चौपाई के एक अंश से किया है, जो आरंभ में ही पाठकों के मनोमस्तिष्क पर भक्ति-भाव की आभा का निर्माण करने में सफल रहता है । यदि साहित्य की भाषा में बात करूँ तो सूत्रात्मकता की दृष्टि से, जहाँ यह देखन में छोटन लगे घाव करत गंभीर, के शब्दगत मर्म को अभिव्यक्त करता है, तो वहीं अर्थगर्भिता और सारगर्भिता की दृष्टि से निस्संदेह ‘गागर में सागर’ की उक्ति को चरितार्थ करता है ।

‘लछमन गुन गाथा’ के अध्यायों के शीर्षकों की आवृत्ति मात्र से ही पाठकों को लक्ष्मण के चारित्रिक गुणों का पूर्वाभास हो जाता है दृष्टव्य है इसका उदाहरण - लखन सकोप बचन जे बोले, व्याकुल बिलख बदन उठि धाए, तुम्हरेहिं भाग रामु बन जाहीं, आजु राम सेवक जसु लेऊँ, लै जानकिहि जाहु गिर कंदर, सीता सहित अनुज प्रभु आवत, नाम सत्रुहन बेद प्रकासा आदि-आदि शीर्षकों के वाचन मात्र से हम पाठकों को लक्ष्मण के बहुआयामी व्यक्तित्व के बारे में सहज अहसास हो जाता है।

गौरतलब है कि ‘लछमन गुन गाथा’ में लक्ष्मण के चरित्र को सधे और सारगर्भित शब्दों में प्रकट करने का प्रयास किया गया है । कई बार तो हमें ऐसा लगता है कि महाकवि वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास की लेखनी, जहाँ कदाचित मंद रह गई, वहाँ भी इस पुस्तक में लेखिका ने अपनी मर्मस्पर्शी संवेदना और कल्पनाशीलता से उसको हमारे समक्ष कुशलता से उजागर किया है और हम पाठकों को लाभान्वित किया है । मेरी दृष्टि से लक्ष्मण के गुणों को प्रकाशित करनेवाली यह पुस्तक निस्संदेह वर्तमान जीवन-शैली जनित हमारे मन के अँधेरों को दूर करने और उजियारे की आभा से हमें आलोकित करने का काम करेगी ।

राम कथा हमारे कण-कण में बसा है, रग-रग में बसा है और मर्यादा पुरुषोत्तम राम हमारे रोम-रोम में बसे हैं । हमारे जीवन के हरविध पक्षों पर राम कथा का प्रभाव सहज देखा जा सकता है । निःसंदेह राम कथा का संदेश हमारी संस्कृति की अमूल्य निधि है, सभ्यता की गौरवशाली थाती है । अतएव हमारे लिए स्पृहणीय है, वांछनीय है और प्रातः वंदनीय है ।

‘लछमन गुन गाथा’ का प्रकाशन संपूर्ण रामकथा वांग्मय में एक अद्वितीय और स्पृहणीय उपलब्धि है, क्योंकि रामकथा की उपस्थापना लक्ष्मण के चरित्र को आत्मसात् किए बिना कदापि संभव नहीं है ।

यह शोधपरक पुस्तक न केवल हिंदी साहित्य के आम पाठकों के लिए बल्कि शोध-छात्रों के लिए भी सर्वथा पठनीय है और संदर्भ पुस्तक के रूप में संग्रहणीय है । मैं इस हेतु इसकी लेखिका परम् विदुषी आदरणीया डॉ. वीनू अरुणजी को उनके इस असाधारण योगदान के लिए साधुवाद देता हूँ, धन्यवाद करता हूँ । और आशा करता हूँ कि राम कथा के अनछुए अन्यान्य पात्रों पर भी रामायण सेंटर इसी तरह अपने शोधात्मक विमर्श के साथ पाठकों के समक्ष उपस्थित होता रहेगा और तथैव वैश्विक समाज एवं साहित्य को सिंचित, समृद्ध करता रहेगा ।

मैं आप लोगों का समय अधिक न लेते हुए मैथिलीशरण गुप्त के इस कविता अंश से अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा, जो एक तरह से संपूर्ण राम कथा का निचोड़ प्रस्तुत करता है । पंक्तियाँ हैं--

पूज्य पिता के सहज सत्य पर, वार सुधाम, धरा, धन को,

चले राम, सीता भी उनके, पीछे चली, गहन वन को।
उनके पीछे भी लक्ष्मण थे, कहा राम ने “तुम कहाँ?”

विनत वदन से उत्तर पाया--

“तुम मेरे सर्वस्व जहाँ” ।।
“तुम मेरे सर्वस्व जहाँ ।।”

-डॉ शुभंकर मिश्र
 उप महासचिव, विश्व हिंदी सचिवालय
 ई-मेल: dsg@vishawhindi.com

 

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