शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
 
सिंह और सियार | पंचतंत्र की कहानी (बाल-साहित्य )     
Author:विष्णु शर्मा



बहुत पहले हिमालय की कन्दराओं में एक बलिष्ठ शेर रहा करता था। एक दिन वह शिकार के पश्चात अपनी गुफा को लौट रहा था। रास्ते में उसे एक मरियल-सा सियार मिला जिसने उसे दण्डवत् प्रणाम किया। फिर बोला , “महाराज! मैं आपका सेवक बनना चाहता हूँ। कुपया मुझे अपनी शरण में ले लें। मैं आपकी सेवा करुँगा और आपके द्वारा छोड़े गये शिकार से अपना गुजर-बसर कर लूंगा।" शेर ने उसकी बात मान उसे अपनी शरण में रख लिया।

कुछ ही दिनों में शेर द्वारा छोड़े गये शिकार को खा-खाकर वह सियार बहुत मोटा हो गया।

प्रतिदिन सिंह के पराक्रम को देख-देख उसने भी स्वयं को सिंह का प्रतिरुप मान लिया। एक दिन उसने सिंह से कहा, 'अरे सिंह! मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूँ। आज मैं एक हाथी का शिकार करुंगा और उसका भक्षण करुंगा। उसके बचेखुचे माँस को तुम्हारे लिए छोड़ दूँगा।'
शेर ने उस सियार को ऐसा न करने की सलाह दी।

झूठे भ्रम में फँसा वह दम्भी सियार सिंह के परामर्श को अस्वीकार कर पहाड़ की चोटी पर जा खड़ा हुआ। वहाँ से उसने चारों ओर नज़रें दौड़ाई और  जब उसने पहाड़ के नीचे हाथियों के एक छोटे से समूह को देखा तो सिंहनाद की तरह तीन बार सियार की आवाजें लगाकर एक बड़े हाथी के ऊपर झपट पड़ा। हाथी के सिर के ऊपर न गिर वह उसके पैरों पर जा गिरा। हाथी अपनी मस्ती में अपना अगला पैर उसके सिर के ऊपर रख आगे बढ़ गया। क्षण भर में सियार के प्राण पखेरु उड़ गये।

सीख: अभिमान और मूर्खता का साथ बहुत गहरा होता है, इसलिए जीवन में कभी भी घमण्ड नहीं करना चाहिए।

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