शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
 
डॉ रुचि चतुर्वेदी से डॉ विष्णु सक्सेना की बातचीत (विविध)     
Author:डॉ विष्णु सक्सेना

हिन्दी कविता का मंच हो और उस पर गणित की एक व्याख्याता खड़ी होकर अपने काव्य पाठ से लोगों को मंत्रमुग्ध कर रही है तो आश्चर्य होता है। इस मंच की खूबसूरती तब और बढ़ जाती है जब वह भारतीय परिधान (साड़ी) में पूरे संस्कार के साथ काव्य पाठ कर रही होती हैं। श्रोताओं की भीड़ और रह रहकर तालियों की गूंज बताती है कि उस कवियित्री के कितने प्रशंसक हैं। गणित की व्याख्याता से काव्य सुनते हैं तो प्रेम के कवि डॉक्टर विष्णु सक्सेना जी की एक कविता याद आती है, जिसमें वे गणित का जिक्र करते हुए कहते हैं... एक हैं अंक हम, एक हो अंक तुम / आओ दोनों को यूं जोड़ दें। सौभाग्य से ऐसा ही हुआ। मेरी निहारिका के लिए कवियित्री डॉ. रुचि चतुर्वेदी से बातचीत की प्रेम के कवि डॉक्टर विष्णु सक्सेना ने। डॉक्टर सक्सेना "मेरी निहारिका" के संरक्षक भी हैं। हम पाठकों के लिए यहां प्रस्तुत कर रहे हैं दो सितारों की आपस में हुई बातचीत के प्रमुख अंश:


डॉ रुचि चतुर्वेदी से डॉ विष्णु सक्सेना की बातचीत। 

प्रश्न : रुचि जी, मेरा पहला सवाल आपसे करना चाहूंगा कि आप सदा भारतीय वेशभूषा में दिखाई देते हो। जब- जब  आपसे मिला सलीके से पहनी हुई साड़ी, माथे पर मोटी सी  बिंदी होती है। सब कुछ सलीके से होता है। क्या कभी मन  नहीं करता कि आधुनिकता के रंग में हम भी रचें और  प्लाजो पहनें? 

डॉक्टर रुचि : हँसते हुए... पहले तो 'मेरी निहारिका परिवार' को  प्रणाम करती हूँ कि मुझे उन्होंने चुना। यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है। साथ ही आपको भी (डॉक्टर विष्णु सक्सेना) प्रणाम  करती हूँ। जब आपका आशीर्वाद, आपका मार्गदर्शन, हम छोटे,  नन्हें, अकिंचन कलाकारों को मिलता है तो निश्चित ही अपने आप  ही उनकी महक आगे तक जाती है। अब मैं आपके प्रश्न के उत्तर  पर आती हूँ। मेरी ससुराल गांव में है। मेरी सासु माँ ने कहा था, बहू  मेरा मन है कि आप भी कविता की क्षेत्र में आगे बढ़ो। उनका मन था  कि मैं टीवी पर दिखूं। मैंने कहा मम्मी देखती हूं अगर कभी सौभाग्य हुआ और अवसर मिला तो जरूर। लेकिन उन्होंने इसके साथ एक  बात जरूर कही कि बहू जब भी आपको अवसर मिले तो आप हमारे  गांव की, आप हमारे देश की एक भारतीयता को ओढ़ कर ही जाना।  मैंने आज तक प्रयास किया है कि जो बात मेरी सासु मां ने कही, मैं  उसका पालन कर सकूं। अब आपने जो कहा कि ये जो आधुनिक  परिधान हैं मन तो करता है पहनने का लेकिन हम मंच पर जब जाते  हैं तो लोग हमसे उसी भारतीय परिधान की अपेक्षा करते हैं, तो मुझे  लगता है कि उसका पालन करना चाहिए।  

प्रश्न : आप गणित की व्याख्याता हैं अपने वास्तविक जीवन  में। इतने कठिन विषय को चुनने का क्या कारण रहा? मैं तो  गणित में बड़ा कमजोर रहा।

उत्तर : मैं यूपी बोर्ड की छात्रा रही। प्रारंभ से यह मन में था कि जो  चीज कठिन है मैं प्रयास करके देखूं कि यह कठिन क्यों है? ये भाव  मेरे मन में था और कक्षा 10 में जब मैं थी तो मेरे बायो में अधिक  नंबर आए और गणित में उससे दो नंबर कम थे। जाहिर सी बात है  कि मुझे बायो लेना था, लेकिन मैंने 60 छात्राओं में से 58 छात्राओं  को गणित की तरफ जाते देखा। हमारी कक्षा में 60 छात्राएं थी। तो  मुझे लगा कि ऐसी क्या कठिनाई है। मैं चलकर देखती हूं इस पथ पर।  मैंने इसलिए गणित को चुना और बायो को छोड़ा।  

प्रश्न : गणित पढ़ाते- पढ़ाते हिंदी की कवियित्री बनने का  सपना कब देखने लगी आप। जबकि दोनों अपोजिट हैं? 

उत्तर : कक्षा 6 में परम श्रद्धेय शिवओम अंबर जी एक कार्यक्रम  के संयोजक थे, और कविता की एक प्रतियोगिता हुई थी। ये बात  फरुखाबाद की है। मेरे पिता वहां बैंक में कार्यरत थे। उस प्रतियोगिता  के लिए मैंने अपने पापा से पूछा तो उन्होंने कहा कि “आपका मन  है तो बिल्कुल आप भाग लीजिए, लेकिन कविता बहुत आसान नहीं  होती है।” उसमें किसी रचनाकार की रचना का पाठ करना था पहले  दिन। मैंने उसका पाठ किया और उसके बाद अगली बार जब वह  प्रतियोगिता आयोजित हुई तो अपनी कोई रचना सुनानी थी। मैंने  लिखा। अच्छा लगा कि अच्छे अंकों के साथ मुझे प्रथम स्थान मिला।  ये मेरे जीवन का पहला पुरस्कार था। वह शिवओम अंबर जी के कर  -कमल से मुझे मिला था। यह मेरे लिए और गर्व की बात थी। कॉलेज  में भी मैंने प्रयास किया। मैंने प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया और  आगरा कॉलेज में घनश्याम अस्थाना स्मृति पुरस्कार मिला। इसके  बाद आगरा के आनंद इंजीनियरिंग कॉलेज में मुझे पहली बार मंच से  कवियित्री के रुप में प्रस्तुति देने का अवसर मिला।  

प्रश्न : आपकी कविताओं में श्रृंगार का पुट बहुत कम देखने  को मिला। क्या आपको प्रेम अच्छा नहीं लगता या आपको  प्रेम करने का अवसर नहीं मिला? 

उत्तर : हँसते हुए…… नहीं प्रेम तो शास्वत है और मुझे लगता है कि शायद ही इस धरती पर कोई व्यक्ति होगा जिसने प्रेम न किया हो ये  बात और है कि वो प्रिय से प्रेम करता है या अपनी माँ से प्रेम करता है  या अपनी मातृ भूमि से प्रेम करता है। (बीच में रोकते हुए विष्णु जी ने  कहा अभी मातृभूमि पर मत आइए। अभी सिर्फ प्रेमी की ही बात करें  क्या आपको प्रेम करने का अवसर नहीं मिला) .. हँसते हुए डॉक्टर  रुचि ने कहा, प्रेम करने का अवसर तो मिला लेकिन मैं उस चीज को  तो यहां व्यक्त नहीं कर सकती, लेकिन हां प्रेम और श्रृंगार जिसको  मैं अनुभूत करती हूँ वह बार-बार जाकर अध्यात्म से जुड़ जाता है।  

प्रश्न : आप जो कहना चाह रही है तो मुझे किसी का एक शेर  याद आता है.... “वैसे तो तेरा जिक्र जमाने में करुंगा,  कोशिश ये करुंगा कि तेरा नाम न आए...” 

उत्तर में फिर वहीं हँसी…… और एक ही जवाब ....आपने मेरी बात  को खुद ही शेर में कह दिया। अब आगे कहने को कुछ शेष नहीं रहा।  

प्रश्न : आप प्रेम की नगरी आगरा में रहती हैं, जहाँ शाहजहां  ने अपनी पत्नी की याद में ताजमहल बनाया। उसे देखकर  आपको नहीं लगता कि कुछ प्रेम की कविताएं भी लिखी  जाएं? 

उत्तर : मैं प्रेम के नगर आगरा से हूं और उससे भी बड़ी बात कि मैं  और हम दोनों बृज क्षेत्र से हैं। संसार जिस प्रेम को प्रणाम करता है,  मैं उस प्रेम पर लिखती हूं.... भगवान श्रीकृष्ण और राधेरानी के प्रेम  पर। मेरे लिए वही प्रेम है, वही ताजमहल है।  

प्रश्न : आपकी कविताओं में देशभक्ति और सम सामायिक  विषयों का प्रभाव अधिक होता है इसका क्या कारण है?  

उत्तर : नहीं इसके पीछे ऐसा क़ुछ नहीं है, पर मेरा विचार, या मेरा जो  मन है वह कहीं न कहीं समाज के दायरे में घूमता रहता है। और वह  मन वहां से कुछ चीजें निकालकर लाता है। उसमें किसी की पीड़ा  होती है। कभी कोई अच्छे भाव भी लेकर आते हैं। वहां से अनायास  ही वह भाव मातृभूमि की ओर चल पड़ता है और इसलिए कहीं न  कहीं सम सामायिक और मातृभूमि से जुड़े भाव आपको मेरी रचनाओं में अधिक देखने को मिलते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि मैं  शुरू से शिशु मंदिर से लेकर आगे तक इसी वातावरण में रही, तो  शायद उसका भी प्रभाव है।  

प्रश्न : शायद मैं गलत तो नहीं हूँ। आप डॉक्टर तो हैं ही।  आपने गणित में पीएचडी की है, जिसे लोग दसवीं में छोड़  देते हैं। 
 
उत्तर : फिर वही हँसी…..यह सच है। मुश्किल तो है। मैंने गणित में  जो पीएचडी जिस विषय से की वह मैकेनिकल इंजीनियरिंग से जुड़ता  है। वह एक बड़ा चैलेंज है।  

प्रश्न : कविताओं के लिए आपको देश के दूर-दराज इलाकों  में जाना पड़ता है तो ऐसे में परिवार को कैसे संभालते हैं ?  कोई टकराव तो नहीं होता ? 

उत्तर : ये आपने बहुत अच्छा प्रश्न किया। टकराव जैसी स्थिति तो  आज तक नहीं बनी। मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं कि मेरा परिवार ऐसा  है कि जो मुझे पूरी तरह से सहयोग करता है। पतिदेव रजनीश तिवारी  ने मुझे सदैव इस पथ पर आगे जाने को कहा। अब तो मेरा बेटा भी  बड़ा हो गया है। उसका भी पूरा सहयोग मिलता है। है। इतना हीं नहीं  मेरे शोध पत्र पढ़ने के लिए जब लंदन की कैब्रिज विश्वविद्यालय  में जाना पड़ा तब भी मेरे पति और परिवार का पूरा सहयोग मिला।  

प्रश्न : आप तो इंजीनियरिंग कॉलेज में व्याख्याता थी, जाहिर  है अच्छी पे भी मिलती होगी और पतिदेव भी अच्छे पद पर  हैं। फिर हिंदी कवि सम्मेलनों में आने की क्या वजह रही? 

उत्तर : मुझे लगता था कि मैंने जो लिखा है, अगर मैं केवल लिखती  ही रहूंगी तो शायद ज्यादा लोगों तक मेरी बात न पहुंचे। दूसरा कारण  यह कि मेरे पति का स्वप्न था कि आप भी प्रयास कीजिए कि जो  आपने लिखा है वह लोगों को अच्छा लगे और वहां पर आपको स्नेह  और सम्मान मिले व यह मिला भी। मंच से भी और आप सभी का  भरपूर आशीर्वाद मिला। मेरे पास शब्द नहीं है। मैं ऋणी हूँ आप सभी  की। कविता परिवार की।  

प्रश्न : रुचि आपके कवि सम्मेलन की प्रेरणा स्रोत कौन है  जिन्हें आप आइडियल मानती हैं ? 

उत्तर : मैं इस सवाल को दो हिस्सों में बांटना चाहती हूँ। पहला वह  दौर जहां से बिटिया रुचि ने प्रारंभ किया और दूसरा आज का दौर।  आज मैं एक गीत विधा से जुड़ी हुई हूँ। गीत के लिए मैं किससे सीख  सकती हूं और कविता के लिए मुझे कौन प्रेरित करते हैं। मैं अपने  कॉलेज के दौर से आपको सुनती आ रही हूँ। मैं हमेशा सोचती थी कि शायद कभी ऐसा अवसर मिले कि मैं ऐसा कुछ लिख सकूं। आपसे  मैंने बहुत कुछ सीखा। आदरणीय कुंवर बैचेन जी की पावन स्मृतियों  को मैं प्रणाम करती हूँ। मैंने उनको बहुत सुना। और वह जो नन्ही बिटिया रुचि थी, उसने कहीं श्रद्धेंय अटल जी को भी सुना था। टीवी  पर अटल जी की कविताओं को सुनकर मैं पापा से पूछती थी कि क्या मैं भी कभी ऐसा लिख सकूंगी? पापा हँस कर कहते.... बिटिया इसके  लिए बड़ी साधना करनी पड़ती है। मेरा स्वप्न था कि मैं ऐसा करना  चाहती हूँ। वो प्रेरणा मुझे वहाँ से मिली। 
 
प्रश्न: अब मेरा दसवां और आखिरी सवाल, लेकिन यह  सवाल की श्रेणी में नहीं है। मेरी निहारिका के लिए के लिए  आप अपनी सबसे ज्यादा पंसदीदा चार लाइन सुना दीजिए।  

उत्तर : जी! हँसते हुए.... मैं मेरी निहारिका को शुभकामना देती हूं कि ये यात्रा अनवरत जारी रहे और कविताओं का साहित्य के साथ जो  यह संसार है ये इसी प्रकार पुष्पित और पल्लवित होता रहे। मैं चार  पंक्तियां समर्पित करती हूँ.... 

लेखनी यूं ही चले 
शुभकामना, शुभकामना 
हर भाव गीतों में ढले 
शुभकामना,शुभकामना, 
शुभकामना देती रहे 
ये काव्य रथ चलता रहे 
ये दीपज्योपित हो जले शुभकामना... 

डाक्टर रुचि आपको बहुत बहुत धन्यवाद। मैं मेरी निहारिका परिवार  का मुख्य अंग हूँ। इस अधिकार से मैं आपका आभार व्यक्त करता हूँ। 

[साभार - मेरी निहारिका]

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