मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 
राजनीति की संवेदना (कथा-कहानी)     
Author:रामदरश मिश्र

एक लंबे अरसे तक प्रयास करने के बाद ही उसे नगर निगम में सफाईकर्मी की जगह मिल पाई। वैसे था तो वह ग्रेजुएट, लेकिन नौकरी की समस्या अपने स्थायीभाव में थी। पत्नी ने राहत की साँस ली, कम-से-कम अब उसे घर-परिवार और नाते- रिश्तेदारों में ताने तो सुनने को नहीं मिलेंगे।

पत्नी ने प्रस्ताव रखा, क्यों न पहली पगार से गरीबों को कुछ दान-पुण्य कर दिया जाए, क्या पता उन्हीं के भाग्य से यह नौकरी मिली हो।

पहला वेतन पाते ही उसने बिस्कुट, डबलरोटी और कुछ लंच पैकेट्स खरीदे तथा एक बोरेनुमा झोले में रखकर पत्नी के साथ झोंपड़पट्टी की ओर चला गया, जहाँ गरीब- गुरबा रहते थे।
भीड़ लग गई। आदमी औरत और बच्चों ने उन्हें चौतरफा घेर लिया। उसकी पत्नी हर किसी को एक-एक पैकेट थमाती जा रही थी और बदले में ढेर सारी आशीषें बटोर रही थी।

एक दादा किस्म के आदमी ने अपना हिस्सा लेने के बाद पूछा, "कौन निशान पर बटन दबाना है, बाबू ?"

-रामदरश मिश्र

[साहित्य अमृत, जनवरी 2017]

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