मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 
सूखे तिनके | गद्य काव्य (विविध)     
Author:प्रेम नारायण टंडन

समुद्र के किनारे कुछ हरे-भरे छोटे पौधे लगे थे। उन्हीं के पास कुछ सूखे तिनके पड़े थे।

लहर का एक झोंका आया। हरे पौधों को नहलाकर उसने उनका रूप निखार दिया; पर सूखे पौधों को साथ बहा ले चला।

हरे-भरे पौधों ने यह दृश्य देखा तो खुशी और गर्व से झूमने लगे; तिनकों की परवशता पर उन्हें जोर की हँसी आयी। उस हँसी से सूखे तिनके खीझे नहीं। उन्होंने धैर्य से उत्तर दिया - हम डूबते का सहारा बनने जा रहे हैं।

-प्रेम नारायण टंडन

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