शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
 
चींटी सेना (बाल-साहित्य )     
Author:विष्णु शर्मा

बहुत समय पहले की बात है। किसी वन में एक अजगर रहता था। वह बहुत अभिमानी तो था ही, अत्यंत क्रूर भी था। वह जब बाहर निकलता सब जीव उससे डरकर भागने लगते। एक बार अजगर शिकार की तलाश में घूम रहा था। सारे जीव उसे बाहर निकला देख भाग चुके थे। उसे कुछ न मिला तो वह क्रोधित होकर फुफकारते हुए, भोजन की तलाश करने लगा। एक हिरणी अपने नवजात शिशु को पत्तियों के ढेर के नीचे छिपाकर स्वयं भोजन की तलाश में दूर निकल गई थी।

अजगर की फुफकार से सूखी पत्तियाँ उड़ने लगीं और हिरणी का बच्चा नजर आने लगा। अजगर की नजर उस पर पड़ी। हिरणी का बच्चा उस भयानक जीव को देखकर डर के मारे काँपने लगा लेकिन उसके मुँह से चीख तक न निकल पाई। अजगर ने देखते-ही-देखते नवजात हिरण के बच्चे को निगल लिया। तब तक हिरणी भी लौट आई थी, पर वह क्या करती ? आँखों में आँसू भर, जड़ होकर दूर से अपने बच्चे को काल का ग्रास बनते देखती रही।

दुखी हिरणी ने अजगर से बदला लेने की ठान ली। हिरणी की एक नेवले से दोस्ती थी। शोक में डूबी हिरणी अपने मित्र नेवले के पास गई और रो-रोकर उसे अपनी दुःख भरी कथा सुनाई। नेवले को भी बहुत दुःख हुआ। वह दुःख भरे स्वर में बोला, "मित्र, मेरे बस में होता तो मैं उस नीच अजगर के सौ टुकड़े कर डालता। पर क्या करें, वह छोटा-मोटा साँप नहीं है, जिसे मैं मार सकूँ, वह तो एक अजगर है। अपनी पूँछ की फटकार से ही मुझे अधमरा कर देगा। तुम चिंता मत करो। यहाँ पास ही में चींटियों की एक बाँबी है। चींटियों की रानी मेरी मित्र है। उससे सहायता माँगते हैं।"

हिरणी ने निराशा भरे स्वर में कहा, "अगर तुम अजगर का कुछ नहीं बिगाड़ सकते तो भला वह छोटी सी चींटी क्या करेगी?"

नेवले ने कहा, “ऐसा मत सोचो। उसके पास चींटियों की एक बहुत बड़ी सेना है। संगठन में बड़ी शक्ति होती है। "

हिरणी को कुछ आशा बंधी। नेवला हिरणी को लेकर चींटी रानी के पास गया और उसे सारी कहानी सुनाई। चींटी को दया आ गई, उसने सोच-विचारकर कहा, "हम तुम्हारी सहायता करेंगे । हमारी बाँबी के पास एक सँकरीला नुकीले पत्थरों भरा रास्ता है। तुम किसी तरह अजगर को उस रास्ते पर ले आओ। बाकी काम मेरी सेना पर छोड़ दो।"

नेवले को अपनी मित्र चींटी रानी पर पूरा विश्वास था, इसलिए वह अपनी जान जोखिम में डालने को तैयार हो गया। अगले दिन नेवला अजगर के पास जाकर बोलने लगा। अपने शत्रु की बोलते सुनकर अजगर क्रोध से भरकर बाहर आ गया। नेवला उसी सँकरे रास्तेवाली दिशा में दौड़ा। अजगर ने पीछा किया। अजगर रुकता तो नेवला मुड़कर फुफकारता और अजगर को गुस्सा दिलाकर फिर पीछा करने को मजबूर करता। इस प्रकार अजगर उस पथरीले रास्ते पर आ गया और नुकीले पत्थरों से उसका शरीर छिलने लगा और जगह-जगह से खून टपकने लगा था।

उसी समय चींटियों की सेना ने उस पर हमला कर दिया। चींटियाँ उसके शरीर पर चढ़कर छिले शरीर पर को काटने लगीं। अजगर तड़प उठा। अपना शरीर पटकने लगा, जिससे और मांस छिलने लगा और चींटियों वहीं काटने लगीं। असहाय अजगर चींटियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। वे हजारों की संख्या में उस पर टूट पड़ीं थीं। कुछ ही देर में क्रूर अजगर ने तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया।

सीख : संगठन में बहुत शक्ति होती है।

[पंचतंत्र की कहानियाँ]

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश