मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 
जब चंदा पाकर नेता जी रो पड़े | ऐतिहासिक लघुकथा (विविध)     
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी'

नेताजी से सिंगापुर की सार्वजनिक सभाओं में अनेक भाषण दिए। उसी समय की एक घटना है। भाषण देने के बाद नेताजी ने चंदे का अनुरोध किया। हज़ारों लोग चंदा देने के लिए आगे आए। नेताजी को चंदा देने के लिए एक लंबी पंक्ति बन गई। हर व्यक्ति अपने बारी आने पर मंच पर जाता और नेताजी के चरणों में अपनी सामर्थ्यानुसार भेंट चढ़ाकर, चले जाता।

बहुत बड़ी-बड़ी रकमें भेंट की जा रही थी। सहसा, एक मज़दूर महिला अपना चंदा देने के लिए मंच पर चढ़ी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे और तन ढ़कने को बदन पर पूरे कपड़े भी न थे। सभी हतप्रभ उसे देख रहे थे। उसने नेताजी को तीन रूपये भेंट करते हुए कहा,"मेरी यह भेंट स्वीकार कीजिए। मेरे पास जो कुछ भी है, वह आपको भेंट कर रही हूँ!"

नेताजी संकोच कर रहे थे। वे सोच रहे थे कि यदि उसकी सारी पूंजी स्वीकार कर लेंगे तो उसका क्या होगा! वे दुविधा में थे लेकिन स्वीकार न करेंगे तो उसके दिल पर क्या बितेगी! नेताजी की आँखों से आँसू निकलकर उनके गालों पर लुढ़क पड़े। सहसा, नेताजी ने हाथ आगे बढ़ा वह भेंट स्वीकार कर ली।

नेताजी ने बाद में अपने साथियों का बताया,"मेरे लिए यह तीन रूपये करोड़पतियों के लाखों रूपयों से कहीं अधिक कीमती हैं।"

प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी'

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