मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 
हिमाचल की धाम संस्कृति (विविध)     
Author:चंद्रकांता



साईं इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाये।’

प्रत्येक संस्कृति का अपना विशिष्ट भोजन संस्कार होता है। खील बताशों के बिना दिवाली, सेवई के बगैर ईद, केक के बिना क्रिसमस और पायसम के बगैर पोंगल का कोई सोच सकता है क्या ! शायद नहीं। साथियो, भोजन का संबंध केवल स्वाद से नहीं समाज और सामूहिकता से भी होता है। ग्लोबलाइजेशन और भौतिक संपन्नता ने अर्थव्यवस्था और राजनीति के साथ हमारे खानपान की संस्कृति को भी प्रभावित किया है। हमारे खानपान में विविधता आयी है और रसोईघर में एक किस्म का ‘फ्यूजन’ देखने को मिला है। पारंपरिक व्यंजनों को नए तरीके से बनाया जाने लगा है लेकिन यह दुःख की बात है कि एक तरफ घर परिवारों में साथ बैठकर भोजन करने की संस्कृति अब सिमटने लगी है और दूसरी तरफ खाने की बर्बादी अधिक होने लगी है। ऐसे माहौल में हिमाचल प्रदेश की धाम परंपरा सामूहिकता और मितव्ययिता का एक अनुकरणीय उदाहरण बनकर सामने आती है।

धाम क्या है? विवाह या अन्य शुभ अवसरों पर आयोजित सामूहिक भोजन को हिमाचल में धाम कहा जाता है। धाम तैयार करने वाले खानसामों को बोटी कहकर बुलाया जाता है। बोटी एक पुश्तैनी व्यवसाय है जिन पर पारंपरिक तरीके से धाम को बनाने की जिम्मेदारी रहती है। भोजन केवल पकाने और खाने का ही नाम नहीं है, भोजन में भावों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। किस भाव के साथ भोजन पकाया गया है, किस भाव से परोसा गया है और किस भाव से ग्रहण किया गया है, वह भी महत्वपूर्ण है।

धाम एक संस्कृति है जिसमें उत्सव के आयोजन से कई दिन पहले घर की बड़ी बूढ़ी औरतें मांगलिक गीत गाते हुए मसालों को कूटती हैं और किसी साफ जगह पर 11 फुट लंबा 1 फुट चौड़ा और 10 फुट गहरा गड्ढा खोदा जाता है जहां भोजन के पकाए जाने की व्यवस्था की जाती है। खाना बनाने के लिए पीतल के बड़े-बड़े संकरे मुंह वाले बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है जिन्हें चरोटी कहा जाता है। खाना बनाते हुए पूरी स्वच्छता बरती जाती है। धाम में किसी किस्म के लहसुन या प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता।

मूल रूप से धाम को शुद्ध देसी घी में पकाया जाता है। धाम में सादा चावल, तली हुई दालें, मधरा, राजमाह, पनीर, कढ़ी, माह की दाल, चने का खट्टा और अंत में मीठा भात यानी मीठे चावल परोसे जाते हैं। संपन्नता के अनुरूप धाम में व्यंजनों की संख्या घटती और बढ़ती रहती है लेकिन मोटे तौर पर 8 से 10 व्यंजन किसी भी धाम में तैयार किये जाते हैं। पूरे गाँव को धाम दी जाती है। धाम को परोसने का भी एक ख़ास तरीका है। धाम पत्तों से बने हुए बर्तनों यानी पत्तल पर परोसी जाती है। धाम में व्यंजन को परोसे जाने का एक निश्चित क्रम होता है, लोगों को बैठाकर पंगत में खाना खिलाया जाता है और खाने सत्र पूरा होने से पहले कोई व्यक्ति उठ नहीं सकता। धाम की यह परंपरा 1000 वर्ष से भी अधिक पुरानी है। थोड़े बहुत फेरबदल के साथ हिमाचल के बारह जिलों में बारह तरह की धाम परोसी जाती है। काँगड़ा की धाम सबसे अच्छी और शुद्ध मानी जाती है। जिस पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।

धाम संस्कृति में भी काफी बदलाव आए हैं, जैसे पत्तलों के स्थान पर प्लास्टिक की प्लेट में धाम परोसा जाने लगा है या लोग जूते पहनकर ही धाम खाने के लिए बैठ जाते हैं। शहरों में ‘बुफे’ धाम भी लगाया जाता है, जहाँ खड़े होकर खाने की परम्परा है, लेकिन कुल मिलाकर धाम ने न केवल सामाजिक संवाद और सामूहिकता को सहेज कर रखा है बल्कि अपनी प्रकृति में यह पर्यावरण सम्मत भी है। धाम के आचार व्यवहार को प्रत्येक भारतीय द्वारा अपनाया जाना चाहिए ताकि खानपान की भारतीय संस्कृति बनी रहे।

- चंद्रकांता

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हिमाचल धाम भाग - 2 

हिमाचल की भोजन संस्कृति धाम पर पिछले आलेख में आपने धाम की परम्परा, उत्सव और बोटी आदि के विषय में जाना। आइये आज रूबरू होते हैं हिमाचल के बारह जिलों में परोसी जाने वाली बारह तरह की धाम है। जहाँ कांगड़ा की धाम को सबसे स्वादिष्ट माना जाता है वहीं कुल्लू की धाम सबसे प्राचीन मानी जाती है। धाम में मुख्य रूप से मीठे चावल, भांति भांति की दालें, खट्टा, मदरा और सेपू बड़ी आदि परोसे जाने का रिवाज़ है।

कांगड़ा की धाम – कांगड़ा की धाम शुद्धता के लहजे से उत्तम मानी जाती है। कांगड़ा में चने की दाल, माह उड़द, साबुत, मदरा, दही चना, खट्टा, चने अमचूर, पनीर मटर, राजमा, सब्जी में जिमीकंद, कचालू, अरबी आदि व्यंजन परोसे जाते हैं। मीठे में अधिकांशतः बदाणा (रंगीन मीठे चावल), पूरी या बूंदी के लड्डू भी परोसे जाते हैं।

बिलासपुर की धाम – यहाँ उड़द की धुली दाल, उड़द, काले चने खट्टे, तरी वाले फ्राई आलू या पालक में बने कचालू, रौंगी, लोभिया डाल परोसी जाती है। मीठे व्यंजनों में मीठा बदाणा (मीठे चावल) या कद्दू का मीठा प्रचलन में है। परिवार की आर्थिक क्षमता के अनुसार सादे चावल की जगह बासमती पुलाव, मटर पनीर व सलाद आदि भी परोसा जाता है।

सिरमौर की धाम – यहाँ धाम की परंपरा ग्रामीण इलाकों में ही अधिक है। चावल, माह की दाल और मीठे में जलेबी, हलवा शक्कर या फिर पूड़े खिलाए जाते हैं। सिरमौर की धाम के बारे में एक जन प्रचलित धारणा हमने सुनी है जिसे बताने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे हैं- कि वहाँ प्रधान पद का उम्मीदवार व्यक्ति अपने घर में पंचायत के लोगों को धाम देता है। जिसमें कच्ची और पक्की शराब के अलावा बकरे का मीट परोसा जाता है। धाम में शामिल लोगों की संख्या एक तरह का शक्ति प्रदर्शन होता है जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि फलाना उम्मीदवार जीतेगा या हारेगा।

सोलन की धाम – यहाँ की धाम में हलवा-पूरी, पटांडे आलू-गोभी या मौसमी सब्जियां और मिश्रित दाल व चावल चावल आदि भी परोसे जाते हैं। यहाँ बिलासपुरी धाम का प्रभाव भी दिखता है।

ऊना की धाम – यहां चावल, दाल चना, राजमा, दाल माश खिलाए जाते हैं। यहां सलूणा और बलदा (एक प्रकार की कढ़ी) खास लोकप्रिय है। मीठे में शक्कर या बूरा परोसने का रिवाज़ है। इस क्षेत्र में पंजाब के खान पान का प्रभाव दिखाई पड़ता है।

हमीरपुर की धाम – हमीरपुर की धाम में दालें अधिक परोसी जाती हैं। राजमा या आलू का मदरा, चने का खट्टा व कढ़ी प्रचलित है। मीठे में यहां पेठा, बदाणा व कद्दू का मीठा भी बनता है। पहले समय में यहां नानकों, और मामकों की तरफ से धाम दी जाती थी। अब समय के साथ रिवाज़ में परिवर्तन आने लगा है।

शिमला की धाम – शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। यहाँ माह उड़द की दाल, चने की दाल, मदरा, दही में बनाए गए सफेद चने, आलू, जिमीकंद, पनीर, माहनी, खट्टा में काला चना या पकौड़े, मीठे में बदाणा या छोटे गुलाब जामुन परोसे जाते हैं।

मंडी की धाम – सेपू बड़ी मंडी धाम की विशेषता है। यहां धाम में मटर पनीर, राजमा, काले चने, खट्टे, खट्टी रौंगी लोभिया व आलू का मदरा, पकौड़े रहित पतली कढ़ी परोसी जाती है। मीठे व्यंजनों में मूंगदाल या कद्दू का हलवा और छोटे गुलाब जामुन दिए जाने की परम्परा है।

कुल्लू की धाम – कुल्लू का धाम मंडी की तर्ज पर ही होता है। यहां मीठा, बदाणा या कद्दू, आलू या कचालू खट्टे, दाल राजमा, उड़द या उड़द की धुली दाल, लोबिया, सेपू बड़ी, लंबे पकौड़ों वाली कढ़ी व आखिर में मीठे चावल खिलाए जाते हैं।

चंबा की धाम – यहां चावल, मूंग साबुत, मदरा, माह, कढ़ी, मीठे चावल, खट्टा, मोटी सेवेइयां खाने का हिस्सा हैं। यहां मदरा मुख्य बोटी परोसता है। शुद्धता का ख्याल रखा जाता है। यहाँ धाम पत्तल और दोनों में परोसा जाता है। पत्तल व दोने पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक नहीं होते। हालाँकि थर्माकोल व प्लास्टिक के पत्तलों का इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ रहा है जो चिंता का विषय है।

लाहुल-स्पीति की धाम – लाहुल-स्पीति की धाम में तीन बार भोजन परोसने का रिवाज़ है। चावल, दाल चना, राजमा, सफेद चना, गोभी आलू मटर की सब्जी और एक समय भेडू, नर भेड़ का मीट या कभी तला हुआ माँस। खमीरी भठूरे या सादा रोटी और नमकीन चाय यहाँ धाम में परोसी जाती है। परोसने के लिए कांसे की थाली, शीशे या स्टील का गिलास व तरल खाद्य के लिए तीन तरह के प्याले इस्तेमाल होते हैं।

किन्नौर की धाम – यहाँ की धाम में माँसाहारी भोजन व शराब प्रमुख है। धाम के अन्य व्यंजनों के साथ पूरी, हलवा सब्जी भी बनाई जाती है।

-चंद्रकांता

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