शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
 

परिहासिनी

 (विविध) 
 
रचनाकार:

 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की लघु हास्य-व्यंग्य से भरपूर - परिहासिनी।

 

खुशामद

एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, "कहो जी, तुम्हारी माशूका तुम्हें क्यों नहीं मिली?"

बेचारा उदास होकर बोला, "यार, कुछ न पूछो, मैंने इतनी खुशामद की कि उसने अपने को सचमुच परी समझ लिया और हम आदमजाद से बोलने में भी परहेज किया।"

- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

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