वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 

जाने भी दो....चाँद में भी दाग होता है

 (विविध) 
 
रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

कौन मेक्ग्रेगर, कौन वरान्निकोव?

भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में आयोजित दसवां विश्व हिंदी सम्मेलन (सितंबर 10-12) नि:संदेह भव्य था। इसकी भव्यता के दर्शन एअरपोर्ट से एअरपोर्ट से दिखने आरम्भ हो गए थे। मोदीजी के बड़ी-तस्वीरें लगी थी। होटल की राह पकड़ी तो झीलों की नगरी में स्वागत करती मोदीजी की एक और तस्वीर दिखाई पड़ी और फिर एक और...! सड़क पर मोदीजी का आदमकद कटआउट। नगर के हर मुख्य चौराहे पर चारों और मोदीजी! भोपाल मोदीमय था। लगा कुछ ज्यादा नहीं हो गया? तभी सड़क के बीचोंबीच फुटपाथ पर लगे पोस्टरों पर पड़ी पूरी मुख्य सड़क पर हिंदी साहित्यकारों व हिंदी भाषाविदों के विशाल चित्र लगे हुए थे। अब माहौल कुछ मोदीमय से हिंदीमय लगने लगा। इन विशाल चित्रों में कबीर, तुलसी, मीरा, रसखान, अमीर खुसरो, मलिक मोहम्मद जायसी, प्रेमचंद, माखनलाल चतुर्वेदी, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, रामधारीसिंह दिनकर, कवि प्रदीप, सुभद्राकुमारी चौहान, हरिवंशराय बच्चन, विद्यानिवास मिश्र, दुष्यंत कुमार के चित्रों के अतिरिक्त विदेशी हिंदी भाषाविद् का चित्र भी सम्मिलित था। 

सड़क पर सुसज्जित इस विदेशी भाषाविद् के चित्र ने मुझे विशेष आकर्षित किया। चित्र पर लिखा था - रोनाल्ड स्टूअर्ट मेक्ग्रेगर। लेकिन....वह चित्र तो मेक्ग्रेगर का था ही नहीं। फिर? वह चित्र दरअसल एक अन्य विदेशी भाषाविद् अलेक्सेई पेत्रोविच वरान्निकोव का था। अब चित्र को गलत कहें कि चित्र पर लिखे नाम को? या इसे जैसे अंग्रेजी में कहा जाता है ना -'टू इन वन' समझ लें! नाम 'रोनाल्ड स्टूअर्ट मेक्ग्रेगर (Ronald Stuart McGregor )' का और चित्र 'अलेक्सेई पेत्रोविच वरान्निकोव (Aleksei Petrovich Varennikov)' का। 
 
नि:संदेह, सम्मेलन के सभागारों के नाम तो ठीक थे। सड़क वाले चित्र में शायद त्रुटि हो गई थी। फिर भी भावना तो अच्छी ही थी कि विदेशी हिंदी भाषाविद् भी सम्मिलित किए गए थे।


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