वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 

हमारे हिंदी पत्र समूहों की इंटरनेट समझ

 (विविध) 
 
रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

दैनिक भास्कर (जून 16, 2015) में एक समाचार प्रकाशित हुआ, "EXCLUSIVE: भारत की साख पर GOOGLE का 'फन'

पहली बात तो यह है कि शीर्षक में जो 'अंग्रेज़ी-हिंदी' की खिचड़ी पकाई है वह किस तरह की भाषा के स्तर का प्रतिनिधित्व करती है? क्या हिंदी शब्दकोश इतना दिवालिया हो गया है कि दैनिक भास्कर वाले एक शीर्षक हिंदी में ठीक तरह नहीं लिख सकते?

आगे लिखा है, "गूगल पर इंडिया सर्च करते ही फटी साड़ी में कोई महिला दिखाई देगी, रोता-बिलखता कोई बुजुर्ग प्रकट होगा। क्या भारत या हिंदुस्तान की छवि ये है? आखिर गूगल हमारी छवि इस तरह खराब क्यों कर रहा है?" 

समाचार भ्रामक और हास्यास्पद है।

यह जानने की आवश्यकता है कि सर्च इंजन कैसे काम करते हैं!  गूगल छायाचित्र अपलोड नहीं करता लोग करते हैं। आप जिस भी छायाचित्र की बात कर रहे हैं उसपर अपना 'माउस ओवर' करते ही आप उस वेब साइट का पता देख सकते हैं। वे सब ब्लाग व अन्य वेब पृष्ठों से आए हैं न कि गूगल से। थोड़ी सी जानकारी रखने वाला यह बात जानता है। आपका आलेख भ्रमित कर रहा है।

इन छाया चित्रों में गलत क्या दिखाया गया है? क्या यह वास्तविकता नहीं है?  क्या दैनिक भास्कर ने बस-रेलगाड़ी की ऐसी हालत नहीं देखी? आप सामान्य बस से गांव-देहात में जाकर देखिए। आप समस्या के निदान के स्थान पर कैमरे की आँख फोड़ने का सुझाव दे रहे हैं?

दैनिक भास्कर लिखता है, "मामले को dainikbhaskar.com के 10 हजार रीडर्स ने कमेंट कर मांग की है कि सरकार या तो पूरी दुनिया से ये आपत्तिजनक हटवाए या गूगल को देश में बैन कर दे।"

क्या 10 हज़ार प्रतिक्रियाओं में किसी ने भी आपको यह नहीं बताया कि गूगल की इस सारे प्रकरण में कोई भूमिका नहीं है।

दैनिक भास्कर का वक्तव्य यह प्रमाणित करता है कि किस तरह भोली-भाली जनता तथ्यों को जाने बिना मीडिया से सहमत जाती है। जनता भोली है और  पत्रकार अनभिज्ञ!

सभी विकसित देशों में किसी भी समाचार के दो संस्करणों (प्रिंट और डिजिटल/ऑनलाइन) का संपादक व पत्रकार दो भिन्न दल होते हैं। ऑनलाइन समाचार लेखन वाले पत्रकार पत्रकारिता के अतिरिक्त इंटरनेट इंवेस्टिगेशन, ग्राफिक्स, मल्टीमीडिया, सर्च इंजिन की बेहतर समझ रखने वाले होते हैं लेकिन हमारे 'हिंदी समाचारपत्रों व पत्रकारों' में ऐसा प्रदर्शन/समझ दिखाई नहीं पड़ती।

पत्रकारों को चाहिए कि वे वेब पत्रकारिता (न्यू मीडिया) में दक्षता प्राप्त करें ताकि इन त्रुटि-पूर्ण भ्रामक जानकारियों से बचा जा सके।

गूगल को देश निकाला दे दो! आपने कहा हमने माना! वाह भाई! पहले आप गूगल से भी बेहतर सर्च इंजिन तैयार कीजिए फिर आगे की बात करें।


- रोहित कुमार 'हैप्पी'

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