साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
 

माँ पर दोहे | मातृ-दिवस

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

जब तक माँ सिर पै रही बेटा रहा जवान।
उठ साया जब तै गया, लगा बुढ़ापा आन॥

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माँ अपनी की आ गई 'रोहित' जब भी याद।
उठ पौधों को दे दिया, हमने पानी-खाद॥

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माँ सपने में आ मुझे, पूछे मेरा हाल।
दूजी दुनिया में गई, फिर भी मेरा ख्याल॥

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जीवन पूरा ला दिया, पाला सब परिवार।
आज उसे मिलती नहीं, घर में रोटी चार॥

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जीवन भर देती रही, जी भर जिसे दुलार।
माँ अपनी को दे रहा, बेटा वही उधार॥

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

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