देवनागरी ध्वनिशास्त्र की दृष्टि से अत्यंत वैज्ञानिक लिपि है। - रविशंकर शुक्ल।
 

"हिन्दू" शब्द की व्युत्पत्ति

 (विविध) 
 
रचनाकार:

 महावीर प्रसाद द्विवेदी | Mahavir Prasad Dwivedi

किसी-किसी का मत है कि हिन्दू शब्द नदीवाचक सिन्धु शब्द का अपभ्रंश है और इंडस (Indus) अर्थात सिन्धु-शब्द से ही अँगरेजी शब्द इंडिया (India) की उत्पत्ति है। किसी-किसी का मत है कि अरबी हिन्द शब्द से अँगरेजी शब्द इंडिया निकला है। कोई कोई पंडित हिन्दू शब्द की सिद्धि संस्कृत व्याकरण से करते हैं और कहते हैं कि वह हिसि + दो + धातुओं से बना है और हीन अर्थात् बुरे या कुमार्गगामी लोगों को दोष या दराड देने वाले आर्यों का नाम है। बहुत आदमी हिन्दू शब्द को फ़ारसी भाषा का शब्द मानते हैं और उसका अर्थ चोर, डाकू, राहजन गुलाम, काला, काफिर आदि करते हैं। फ़ारसी में हिन्दू शब्द ज़रूर है और अर्थ भी उसका अच्छा नहीं है। इसी से इस शब्द के अर्थ की तरफ़ लोगों का इतना ध्यान गया है। सिन्धु से हिन्दू हो जाना या पुराने जमाने में हिन्दुओं को तुच्छ दृष्टि से देखने वाले मुसलमानों का, उनके लिए काफिर और ग़ुलाम आदि अर्थों का वाचक शब्द प्रयोग करना, कोई विचित्र बात भी नहीं। परन्तु पंडित धर्मानन्द महाभारती न तो इन अर्थों में से किसी अर्थ को मानते हैं और न हिन्दू-शब्द की आज तक प्रसिद्ध व्युत्पत्ति ही को क़बूल करते हैं। आपने पुरानी व्युत्पत्ति और पुराने अर्थ को गलत साबित करके हिन्दू शब्द की उत्पत्ति और अर्थ एक नए ही ढंग से किया है। आपने इस विषय पर, तीन चार वर्ष हुए, बॅगला भाषा में एक लेखमालिका निकाली थी। उसके उत्तर अंश का मतलब हम यहां पर, संक्षेप में, देते है--

फ़ारसी में हिन्दू शब्द यद्यपि रूढ़ हो गया है तथापि वह उस भाषा का नहीं है। लोगों का यह ख्याल कि फ़ारसी का हिन्दू शब्द संस्कृत सिन्धु-शब्द का अपभ्रंश है केवल भ्रम है। ऐसे अनेक शब्द हैं जो भिन्न-भिन्न भाषाओं में एक ही रूप में पाये जाते है। यहाँ तक कि उनका अर्थ भी कहीं-कही एक ही है। पर वे सब भिन्न-भिन्न धातुओं से निकलते हैं। उदाहरण के लिए शिव शब्द को लीजिए। संस्कृत में उसको साघनिका तीन धातुओं से हो सकती है। पर अर्थ सबका एकही, अर्थात् कल्याण या मङ्गल का वाचक है। यही 'शिव' शब्द यहूदी भाषा में भी है। वह अँगरेज़ी अक्षरों में "Seeva" लिखा जाता है। पर उच्चारण उसका शिव होता है। वह यहूदी भाषा में 'शू' धातु से निकला है। उसका अर्थ है "लाल रंग"। यहूदियों में 'शिव' नाम का एक वीर भी हो गया है। अब देखिए, क्या संस्कृत का 'शिव' यहूदियों के 'शिव' से भिन्न नही? लोग समझते हैं कि संस्कृत का 'सप्ताह' और फ़ारसी का 'हफ़्ता' शब्द एकार्थवाची होने के कारण एक ही धातु से निकले हैं। यह उनका भ्रम है। हफ़्ता एक ऐसी धातु से निकला है जो संस्कृत-सप्ताह शब्द से कोई सम्बन्ध नहीं रखता। फ़ारसी में से (से) स (स्वाद) स ( सीन ) श (शीन ) ऐसे चार वर्ण हैं जिनका उच्चारण एक दूसरे से बहुत कुछ मिलता है। अतएव सप्ताह का 'स' हफ़्ता के 'ह' में कभी नहीं बदल सकता। हफ़्ता शब्द सप्ताह का अपभ्रंश नहीं। जो कोई उसे सप्ताह का अपभ्रशं समझते हैं वे भूलते हैं।

ईसा के पांच सौ वर्ष बाद मुहम्मद का जन्म हुआ। उनके जन्म के कोई साढ़े सात सौ वर्ष बाद मुसलमानों ने भारत में पदार्पण किया। यदि हिन्दू शब्द मुसलमानों का बनाया हुआ है तो उसकी उमर बारह सौ वर्ष से अधिक नहीं। परन्तु पाठकों को सुनकर आश्चर्य होगा कि हिन्दू-शब्द ईसा के जन्म से भी कई हजार वर्ष पहले का है। तो फिर क्या वह वेदों में है? नहीं। किसी शास्त्र में है? नहीं। जैनों या यौद्धों के पुराने ग्रंथों में है? नहीं। फिर है कहां? है वह अग्निपूजक पारसियों के धर्मग्रन्थ जेन्दावस्ता मैं है। जिन पारसियों को आजकल हिन्दू लोग, धर्म के सम्बन्ध में बुरी दृष्टि से देखते हैं उन्हीं के प्राचीनतम ऋषियों और विद्वान पंडितों ने हिन्दू शब्द के आदिम रूप को अपने धर्म-ग्रन्थ में स्थान दिया है। वह आदिम रूप हन्दू शब्द है। यहूदियों की धर्म-पुस्तक ओल्ड टेस्टामेंट ( बाइबल के पुराने भाग) में भी हन्दू शब्द पाया जाता है। अब देखना है कि इन दोनों ग्रन्थों में से अधिक पुराना ग्रन्थ कौन है।

क्रिश्चियन लोगों का कथन है कि बाइबिल का पुराना भाग क्राइस्ट से पांच हजार वर्ष पहले का है। इसमें कोई सन्देह नहीं। इसे वे पूरे तौर पर सच समझते हैं। पारसी कहते हैं-"Our Zendavesta is as ancient as the creation; it is as old as the Sun or the Moon" " अर्थात् धर्मग्रन्थ ज़ेन्दावस्ता इतना पुराना है जितनी यह सृष्टि; वह इतना प्राचीन है जितना सूर्य या चन्द्रमा।" पारसियों की यह उक्ति सच है। इसके प्रमाण--

(१) यहूदियों का धर्म्म-शाख, ओल्ड टेस्टामेंट, हिब्रू अर्थात इत्रीय भाषा में है और पारसियों को जेन्दावस्ता जेन्द भाषा में। हिब्रू भाषा की अपेक्षा जेन्द्र भाषा बहुत पुरानी है।
(२) ओल्ड टेस्टामेंट मे अनेक नये नये स्थानों और जंगलों का नाम है। वे स्थान और जंगल ज़ेन्दावस्ता के समय में न थे।
(३) हाल साहेव और मिस्टर मलाबारी कहते हैं कि पुरानी पारसी जाति में मनु के आर्ष विवाह के समान सभ्य विवाह पद्धति प्रचलित न थी। परन्तु ओल्ड टेस्टामेंट मे इस विवाह का वर्णन है। ओल्ड टेस्टामेंट के प्रचार के पूर्ववर्त्ती समाज में जिस प्रकार की विवाह प्रथा प्रचलित थी उसका वर्णन ज़ेन्दावस्ता में है।
(४) ज़ेन्दावस्ता में यहूदी शब्द या यहूदी जाति का नाम नहीं है, पर ओल्ड टेस्टामेंट में कम से कम नौ दफे पारसी जाति का जिक्र है।
(५) बाइबिल में कई जगह लिखा है कि पारसियों ने यहूदियों को जीतकर बहुत काल तक उनके देश में राज किया। पर यहूदियों में किसी ने भी पारसियों को विजय नहीं किया।
(६) अग्निपूजा पृथ्वी की प्राचीन जातियों में सबसे अधिक प्राचीन प्रथा है। ओल्ड टेस्टामेंट के समय में अग्नि-पूजा बन्द हो गई थी; पर ज़ेन्दावस्ता के समय में उसका खूब प्रचार था। इन प्रमाणों से सिद्ध है कि ओल्ड टेस्टामेट से ज़ेन्दावस्ता पुरानाग्रन्थ है।

बँगला संवत् १३०६ के ज्येष्ट की "भारती" नामक बँगला मासिक पत्रिका में भारती सम्पादिका श्रीमती सरलादेवी, बी० ए०, लिखित एक प्रबन्ध छपा है। उसका नाम है "हिन्दू और निगर"। उसमें लिखा है--"हिन्दू-शब्द संस्कृत- सिन्धु-शब्द से उत्पन्न नहीं है। ……ज़ेन्दावस्ता नामक पारसियों का पुराना धर्मग्रन्थ वेदों के समय का है। उसमें हिन्दू-शब्द एक दफे आया है। हारोबेरेजेति (अल्बुर्ज ) पहाड़ के पास पहले पहल ऐय्यर्नब्येजो (आर्य-निवास) था। धीरे-धीरे अहमंज़दाने (पारसियों के परमेश्वर ने) सोलह शहर बसाये। उनमें से पन्द्रहवें शहर का नाम हुआ "हप्तहिन्दव"। वेदों में इसी को "सप्तसिन्धव" कहते हैं। ज़ेन्दावस्ता में तीर-इयास्ते नामक एक पहाड़ के लिए भी, एक बार, 'हिन्दव' शब्द आया है। अनुमान होता है, यही 'हिन्दव' शब्द आज कल के हिन्दूकुश -पर्वत का पिता है।

"व्यवहार में न आने के कारण यह मूल अर्थ धीरे-धीरे भूल गया। तब, बहुत दिनों के बाद, वैयाकरण लोगों ने "स्यन्द" धातु के आगे औणादिक "अ" प्रत्यय लगाकर, किसी तरह तोड़ मरोड़कर, समुद्रार्थ-बोधक सिन्धु-शब्द पैदा कर दिया। यह उनकी सिर्फ कारीगरी मात्र है।" इत्यादि।

यह बात बिलकुल नई है। इसके पहले और किसी ने इसका पता नहीं लगाया।

इससे मालूम हुआ कि हिन्दू शब्द यवनों की सम्पत्ति नहीं; उसे मुसलमानों ने नहीं बनाया। ज़ेन्दावस्ता नामक अति प्राचीन और पारसियों के अति पवित्र ग्रन्थ में उसका प्रयोग सबसे पहले हुआ। ज़ेन्दावस्ता ग्रन्थ वेदों का समसामयिक है। प्राचीन पारसी लोग अग्निहोत्री (अग्नि के उपासक) थे। आजकल के पुरातत्वज्ञ उनकी गिनती प्राचीन आर्यों में करते हैं।

अभी तक आपने हिन्दू-शब्द का सिर्फ अङ्कुर देखा। अब देखिए अङ्कुरोत्पन्न वृक्ष और उसके बाद वृक्षोत्पन्न फल।

यहूदियों का धर्मशाख, ओल्ड टेस्टामेट, 39 भागो में बँटा हुआ है। अथवा यों कहिए कि उसमें जुदा-जुदा 39 पुस्तकें हैं। उनमें से सत्रहवीं पुस्तक का नाम है "दि बुक आफ यस्थर" (The Book of Esther) इसका हिब्रू नाम है आज़्थुर। इसके पहले अध्याय में है--

"Now it came to pass in the days of Ahasuerus. This is Ahasuerus which reigned from India even unto Ethiopia, over an hundred and seven and twenty provinces. Esther, Chapter I. Verse I

अर्थात् अहासुर राजा ने इन्डिया से ईथियोपिया तक राज किया। अब इस बात का विचार करना है कि 'इन्डिया' (हिन्दोस्तान) शब्द किस अर्थ का वाचक है। याद रखिए, यहूदियों का ओल्ड टेस्टामेंट ग्रन्थ ईसा से पाँच हजार वर्ष पहले का है। वह [हिब्रू भाषा में है। उसी के अँगरेजी अनुवाद में 'इंडिया' शब्द आया है। अच्छा, तो यह 'इंडिया' शब्द किस हिब्रू शब्द का अनुवाद हैं। वह पूर्वोल्लिखित 'हन्दू' शब्द का भाषान्तर है। हिब्रू में हन्दू' शब्द का अर्थ है-- विक्रम, गौरव, विभव, प्रजा-शक्ति, प्रभाव इत्यादि। यह बात ओल्ड टेस्टामेंट में अनेक अवतरणों से साबित की जा सकती है। परन्तु उन सब प्रमाणों को देने से लेख अधिक बढ़ जाएगा। इससे हम उन्हें नहीं देते। अब आज्थुर-पुस्तक से जो वाक्य ऊपर दिया गया है उसके अर्थ का विचार कीजिए-- "आहासुरस् राजा ने हन्दू (शक्ति) से ईथियोपिया तक राज्य किया।" जिस तरह अंगरेज़ी में बहुधा गुण वाचक शब्द का परिचय सिर्फ उसके गुणों के उल्लेख से होता है उसी तरह हिब्रू-भाषा में भी होता है। अतएव, "हन्दू से ईथियोपिया तक राज्य किया" इस वाक्य का अर्थ हुआ "हन्दू ( शक्ति विशिष्ट राज्य ) से लेकर ईथियोपिया तक राज किया।" जिनको इस बात पर विश्वास न हो वे डाक्टर हेग का बनाया हुआ अँगरेजी-हिब्रू-व्याकरण देखने की कृपा करें।

यहूदी लोग ग्रीक लोगों से पुराने हैं। ग्रीस में एक ऐतिहासिक लेखक हो गया है। उसका नाम था मिगास्थनीज़। उसने एक जगह लिखा है-- "यहूदी लोगों ने पारसियों से ज्ञान और शिक्षा और भारतवासियों से धन और प्रभुत्व प्राप्त किया था।“ यहूदियों ने भारतवर्ष में व्यापार करके बहुत धन कमाया था, यह बात यहूदियों ने अपने ही लिखे हुए इतिहास में स्वीकार की है। इसके और भी अनेक प्रमाण ग्रीस और रोम-विषयक पुस्तकों में पाये जाते हैं। यहूदी राजा दाऊद के पुत्र सालोमन के विश्व-विख्यात मन्दिर के लिए लकड़ी, चूना, पत्थर इत्यादि मसाला 'हिन्दोस्तान से गया था। थराक्लूश नामक एक ग्रीक ग्रन्थकार ने लिखा है-- "भारतवर्ष का विक्रम और गौरव देख कर ही यहूदी लोग इस देश को हन्द् कह कर पुकारते थे।“ अब देखना है कि यहूदी लोगों ने इस हन्दू शब्द को पाया कहां से? पाया उन्होंने पारसियों की ज़ेन्दावस्ता से। प्रमाण--

(१) यहूदियों के देश में बहुत काल तक पारसियो ने राज्य किया। उनके राज्य-काल में यहूदी अदालतों में जेन्द्र भाषा ही बोलते थे। वे लोग ज़ेन्दावस्ता पढ़ते थे। इस से पारसियों के हिदुव शब्द से यहूदी ज़रूर परिचित रहे होंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं।

(२) यहूदियों ने ज़ेन्दावस्ता में अनेक देशों, पर्वतों और नदियों आदि के नाम लिखे हैं । यथा--

जेन्द भाषा - हिब्रू भाषा

तराशश् (Taurus) - तरश्
मोजा - मोशजा
मज़दाहा - मेशाया (Messiah )
कोशा - कोशा

हिब्रू भाषा कोई स्वतन्त्र भाषा नहीं। वह जेन्द्र भाषा से उत्पन्न है।

अतएव पारसियों की ज़ेन्दावस्ता का पवित्र हिन्दव-शब्द हिब्रू भाषा में "हन्दू" हो गया। जो कुछ यहाँ तक लिखा गया उससे यह सिद्धांत निकला कि—

(१) हिन्दू शब्द पहले पहल ज़ेन्दावस्ता में प्रयुक्त हुआ।
(२) पारसी लोग इस शब्द के सृष्टिकर्ता हैं।
(३) यहूदियो ने इसे अपनी भाषा में लेकर हन्दू कर दिया।

-आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

[क्रमश:]

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