वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 

समकालीन

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 गोरख पाण्डेय

कहीं चीख उठी है अभी 
कहीं नाच शुरू हुआ है अभी
कहीं बच्चा हुआ है अभी
कहीं फौजें चल पड़ी हैं अभी

-गोरख पांडेय 

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