वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 

जवानी के क्षण में | गीत

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
कुछ जीने का आनन्द मिले
कुछ मरने का आनन्द मिले
दुनिया के सूने ऑगन में कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

यह मरघट का सन्नाटा तो रह-रहकर काटे जाता है
दुख-दर्द तबाही से दबकर मुफ़लिस का दिल चिल्लाता है
यह झूठा सन्नाटा टूटे
पापों का भरा घड़ा फूटे
तुम ज़ंजीरों के झनझन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

यह उपदेशों का संचित रस तो फीका-फीका लगता है।
सुन धर्म-कर्म की ये बातें दिल में अंगार सुलगता है
चाहे यह दुनिया जल जाये
मानव का रूप बदल जाये
तुम आज जवानी के क्षण में कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

यह दुनिया सिर्फ सफलता का उत्साहित क्रीड़ा-कलरव है
यह जीवन केवल जीतों का मोहक मतवाला उत्सव है
तुम भी चेतो मेरे साथी
तुम भी जीतो मेरे साथी
संघर्षों के निष्ठुर रण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

जीवन की चंचल धारा में जो धर्म बहे बह जाने दो
मरघट की राखों में लिपटी जो लाश रहे रह जाने दो
कुछ आँधी-अंधड़ आने दो
कुछ और बवंडर लाने दो
नवजीवन में, नवयौवन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

जीवन तो वैसे सबका है, तुम जीवन का शृंगार बनो
इतिहास तुम्हारा राख बना, तुम राखों में अंगार बनो
अय्याश जवानी होती है
गत वयस कहानी होती है
तुम अपने सहज लड़कपन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

-गोपाल सिंह नेपाली

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