हमारी नागरी दुनिया की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि है। - राहुल सांकृत्यायन।
 

जीवन-रेखा

 (कथा-कहानी) 
 
रचनाकार:

 डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav

छुट्टियाँ बिताकर, चलते समय उसने, बैठक की ड्योढ़ी पर गुमसुम बैठे काका के चरण छुए, तो काका ने, आशीर्वाद के लिए अपना हाथ, उसके सिर पर रख दिया-“आच्छ्यो बेट्टा ! हुंस्यारी सीं जइए। मैं तो इब तुन्नै जाता नै बी ना देख सकूँ, आँख फूटगी।”

वह द्रवित हो उठा। समूचा अतीत, किसी चलचित्रा की भाँति, एकाएक उसकी आँखों के सामने घूम गया।

यह वर्षों पुराना सिलसिला है, लगभग बीस वर्ष लम्बा। वह जब भी बाहर जाता था, काका हमेशा दूर तक छोड़ने जाते थे उसे। उसके बार-बार मना करने पर भी, उनका मन लौटने को नहीं होता था-‘थोड़ी दूर ओर, थोड़ी दूर ओर’ करते-करते वह एक-डेढ़ किलोमीटर दूर तक चले जाते थे, उसके साथ। उसके बाद भी, तब तक टकटकी लगाए देखते रहते, जब तक वह आँखों से ओझल नहीं हो जाता था।

लेकिन आज, आँखों के बुझ जाने के कारण, पुत्र-बिछोह की सारी पीड़ा को, काका अन्दर-ही-अन्दर पीए जा रहे थे।

वर्षों के विस्तार में फैला जीवन कितनी जल्दी सिमट जाता है ! उसे लगा, जैसे काका ने जीवन के अन्तिम छोर पर क़दम रख दिया है। उनका अगला क़दम कहाँ पड़ेगा, यह सोचते ही वह काँप उठा।

वह जाते हुए, बार-बार मुड़कर, काका को देखता रहा। काका बिल्कुल वैसे ही बैठे थे; बुझे हुए, जड़वत् और उदास।

- डॉ रामनिवास मानव

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश