वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 

गुरु महिमा

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 संत पलटूदास

संत पलटूदास गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए कहते हैं:

आपै आपको जानते, आपै का सब खेल।
पलटू सतगुरु के बिना, ब्रह्म से होय न मेल॥

पलटू उधर को पलटिगे, उधर इधर भा एक।
सतगुरु से सुमिरन सिखै, फरक परै नहिं नेक॥

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