हमारी हिंदी भाषा का साहित्य किसी भी दूसरी भारतीय भाषा से किसी अंश से कम नहीं है। - (रायबहादुर) रामरणविजय सिंह।
 

गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

 

बरस-बरस पर आती होली,
रंगों का त्यौहार अनूठा
चुनरी इधर, उधर पिचकारी,
गाल-भाल पर कुमकुम फूटा
लाल-लाल बन जाते काले,
गोरी सूरत पीली-नीली,
मेरा देश बड़ा गर्वीला,
रीति-रसम-ऋतु रंग-रगीली,
नीले नभ पर बादल काले,
हरियाली में सरसों पीली !

-गोपाल सिंह नेपाली

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