जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।
 
रैदास के पद -2  (काव्य)       
Author:रैदास | Ravidas

ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै ।
गरीब निवाजु गुसाईआ मेरा माथै छत्रु धरै ॥
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै ।
नीचउ ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै ॥
नामदेव कबीरू तिलोचनु सधना सैनु तरै ।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै ॥

- रैदास

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