वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 
चने का लटका | बाल-कविता (बाल-साहित्य )       
Author:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra

चना जोर गरम।
चना बनावैं घासी राम।
जिनकी झोली में दूकान।।
चना चुरमुर-चुरमुर बोलै।
बाबू खाने को मुँह खोलै।।
चना खावैं तोकी मैना।
बोलैं अच्छा बना चबैना।।
चना खाएँ गफूरन, मुन्ना।
बोलैं और नहिं कुछ सुन्ना।।
चना खाते सब बंगाली।
जिनकी धोती ढीली-ढाली।।
चना खाते मियाँ जुलाहे।
दाढ़ी हिलती गाहे-बगाहे।।
चना हाकिम सब खा जाते।
सब पर दूना टैक्स लगाते।।
चना जोर गरम।।

- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश