भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहुँचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।' - शिवपूजन सहाय।
 
गांधीजी का अंतिम दिन - स्टीफन मर्फी (विविध)       
Author:भारत-दर्शन संकलन | Collections

30 जनवरी 1948 का दिन गांधीजी के लिए हमेशा की तरह व्यस्तता से भरा था। प्रात: 3.30 को उठकर उन्होंने अपने साथियों मनु बेन, आभा बेन और बृजकृष्ण को उठाया। दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर 3.45 बजे प्रार्थना में लीन हुए। घने अंधकार और कँपकँपाने वाली ठंड के बीच उन्होंने कार्य शुरू किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दस्तावेज को पुन: पढ़कर उसमें उचित संशोधन कर कार्य पूर्ण किया।


सुबह 4.45 बजे गरम पानी के साथ नींबू और शहद का सेवन किया। एक घंटे बाद संतरे का रस पीकर वे पत्र-व्यवहार की फाइल देखते रहे। चार दिन पहले सरदार पटेल द्वारा भेजा गया एक पत्र वे अकथनीय वेदना के साथ पढ़ते रहे। जिसमें अपने और नेहरु के आपसी मतभेद और मौलाना के साथ विवाद के कारण उन्होंने इस्तीफा देने के लिए गांधीजी से अनुमति माँगी थी। सेवाग्राम के लिए पत्र भेजने की सूचना वे किसी को दे रहे थे, उस वक्त मनुबेन ने पूछा कि यदि दूसरी फरवरी को सेवाग्राम जाना होगा, तो किशोर लाल मशरुवाला को लिखा गया पत्र न भेजकर उनसे मुलाकात ही कर लेंगे और पत्र दे देंगे। महात्मा का जवाब था "भविष्य किसने देखा है? सेवाग्राम जाना तय करेंगे, तो इसकी सूचना शाम की प्रार्थना सभा में सभी को देंगे।" उपवास से आई कमजोरी को दूर करने के लिए उन्होंने आधे घंटे की नींद ली और खाँसी रोकने के लिए गुड़-लौंग की गोली खाई। लगातार खाँसी आने के कारण मनु बेन ने दवा लेने की बात की, तो उन्होंने जवाब दिया "ऐसी दवा की क्या आवश्यकता? राम-नाम और प्रार्थना में विश्वास कम हो गया है क्या?"

सुबह 7.00 बजे से उनसे भेंट करने वाले लोग आने लगे। राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरु और प्यारेलाल आदि के साथ चर्चा की। इसके बाद बापू ने मालिश, स्नान, बंगला भाषा का अभ्यास आदि कार्य पूरे किए।

सुबह 9.30 बजे टमाटर, नारंगी, अदरक और गाजर का मिश्रित जूस पीया। उपवास के बाद अभी दूसरा आहार लेना शुरू नहीं किया था। दक्षिण अफ्रीका के सहयोगी मित्र रुस्तम सोराबजी सपरिवार आए और उनके साथ अतीत के स्मरणों में खो गए। थकान के कारण फिर आधे घंटे लेट गए। जागने पर उन्हें स्फूर्ति महसूस हुई। उपवास के बाद पहली बार बिना किसी के सहारे चले तो मनु बेन ने मजाक किया "बापू, आज आप अकेले चल रहे हैं, तो कुछ अलग लग रहे हैं।" गांधीजी ने जवाब दिया "टैगोर ने गाया है, वैसे ही मुझे अकेले ही जाना है।"

दोपहर 12.00 बजे बापू ने दिल्ली में एक अस्पताल और अनाथ आश्रम की स्थापना के लिए डॉक्टरों से चर्चा की और मिलने आए मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल के साथ चर्चा कर सेवाग्राम जाने की इच्छा व्यक्त की। अपने प्रिय सचिव स्व। महादेव देसाई के जीवन चरित्र और डायरी के प्रकाशन के लिए नरहरि परिख की बीमारी को ध्यान में रखते हुए चंद्रशंकर शुक्ल को यह जवाबदारी सौंपना तय किया।

दोपहर करीब 1.30 बजे ठंड की गुनगुनी धूप में बापू नोआखली से लाया हुआ बाँस का टोप पहनकर पेट पर मिट्टी की पट्टी बाँधकर आराम कर रहे थे, उस समय नाथूराम गोडसे चुपचाप पूरे स्थान का निरीक्षण कर वहाँ से चला गया था।

दोपहर 2.30 बजे मुलाकात का सिलसिला फिर शुरू हुआ। दिल्ली के कुछ दृष्टिहीन लोग आवास की माँग को लेकर उनके पास आए। शेरसिंह और बबलू राम चौधरी हरिजनों की दुर्दशा के लिए बात करने आए। सिंध से आचार्य मलकानी और चोइथराम गिडवानी वहाँ की स्थिति का वर्णन करने आए। श्री चांदवानी पंजाब में सिखों में भड़के आक्रोश और हिंसा के समाचार लाए। श्री लंका के नेता डॉ। डिसिल्वा अपनी पुत्री के साथ आए। उन्होंने 14 फरवरी को श्री लंका की मुक्ति का संदेश दिया। डॉ। राधाकुमुद मुखर्जी ने अपनी पुस्तक और फ्रंच फोटोग्राफर ने फोटो एलबम उन्हें उपहार में दी। ‘टाइम' मैगजीन के मार्गरेट बर्क व्हाइट से मुलाकात की और श्री महराज सिंह ने एक विशाल सम्मेलन के आयोजन के लिए उनसे सलाह ली।

शाम 4.15 बजे सरदार पटेल इस्तीफे के संबंध में सौराष्ट्र के राजनैतिक प्रसंगों पर चर्चा के लिए उनसे मिलने आए। सरदार पटेल के साथ खूब तन्मयता से बातचीत की, लेकिन बातचीत के दौरान उन्होंने चरखा चलाना जारी रखा। शाम का भोजन पूरा हो, इसका भी ध्यान रखा।

शाम 5 बजे प्रार्थना का समय हो रहा था, लेकिन सरदार से उनकी बातचीत पूरी नहीं हो पाई थी। मनु बेन और आभा बेन ने प्रार्थना में जाने के लिए संकेत किया। जिसका उन पर कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद सरदार पटेल की पुत्री मणिबेन ने हिम्मत करके समय की पाबंदी की ओर उनका ध्यान दिलाया, तो गांधीजी तेजी से उठ गए। देर होने से नाराज हुए गांधीजी ने अपनी लाठी समान लाड़ली मनु-आभा से नाराजगी व्यक्त की। प्रार्थना सभा में प्रवेश करते समय उन्होंने मौन धारण कर रखा था और मनु-आभा के कंधों का सहारा लेकर तेज गति से चलते हुए गांधीजी को रास्ता देने के लिए लोग एक तरफ हट जाते थे। कुछ लोग नमस्कार की मुद्रा में गांधीजी दर्शन कर कृतार्थ भाव अनुभव करते थे।

प्रार्थना के लिए जाते समय रास्ते में अचानक एक व्यक्ति उनके सामने आ खड़ा हुआ। उसके और गांधीजी के बीच मात्र तीन कदम का फासला था। उसने नीचे झुककर प्रणाम की मुद्रा में सहजता से हाथ झुकाया और कहा "नमस्ते गांधीजी" मनु बेन ने उसे रास्ते से हट जाने के लिए कहा कि तुरंत ही उसने बलपूर्वक मनुबेन को एक ओर धकेल दिया। फिर उसने दोनों हाथों के बीच रखी पिस्तौल गांधीजी की ओर कर एक के बाद एक तीन गोलिया दाग दी। महात्मा गांधी के श्वेत वस्त्र को लहुलुहान हो गए थे।

वंदन की मुद्रा में झुका बापू का शरीर धीरे-धीरे आभा बेन की तरफ ढहता गया। गोडसे की तीन गोलियों का तीन अक्षर का उनका प्रतिभाव था "हे राम!" उस समय उनकी कमर पर लटकी घड़ी में शाम के 5 बजकर 17 मिनट हो रहे थे।

[स्टीफन मर्फी की 30 जनवरी 48  की रिपोर्ट]

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