साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
 
अर्जुन उवाच (काव्य)       
Author:कन्हैयालाल नंदन (Kanhaiya Lal Nandan )

तुमने कहा मारो
और मैं
मारने लगा
तुम
चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं
हारने लगा !

माना कि तुम मेरे योग और क्षेम' का
भरपूर वहन करोगे
लेकिन ऐसा परलोक सुधार कर
मैं क्या पाऊँगा
मैं तो तुम्हारे इस बेहूदा संसार में
हारा हुआ ही कहलाऊँगा !

तुम्हें नहीं मालूम
कि जब आमने सामने खड़ी कर दी जाती हैं
सेनाएँनहैया
तो योग और क्षेम नापने का तराज़ू
सिर्फ एक होता है
कि कौन हुआ धराशायी
और कौन है
जिसकी पताका ऊपर फहरायी !
योग और क्षेम के
ये पारलौकिक कवच
मुझे मत पहनाओ
अगर हिम्मत है
तो खुलकर सामने आओ
और जैसे
मेरी जिंदगी दाँव पर लगी है
वैसे ही तुम भी लगाओ !

- कन्हैयालाल नंदन

*योगक्षेमं वहाम्यहम् (गीता)

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