साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
 
माँ | कविता (काव्य)       
Author:दिव्या माथुर

उसकी सस्ती धोती में लिपट
मैंने न जाने
कितने हसीन सपने देखे हैं
उसके खुरदरे हाथ मेरी शिकनें सँवार देते हैं
मेरे पड़ाव हैं
उसकी दमे से फूली साँसें
ठाँव हैं
कमज़ोर दो उसकी बाँहें उसकी झुर्रियों में छिपी हैं
मेरी खुशियाँ
और बिवाइयों में
मेरा भविष्य। 

-दिव्या माथुर
[साभार : हिन्दी समय]

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