वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 
अफसर कवि | व्यंग्य (विविध)       
Author:हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai

एक कवि थे। वे राज्य सरकार के अफसर भी थे। अफसर जब छुट्‌टी पर चला जाता, तब वे कवि हो जाते और जब कवि छुट्‌टी पर चला जाता, तब वे अफसर हो जाते।

एक बार पुलिस की गोली चली और दस-बारह लोग मारे गए। उनके भीतर का अफसर तब छुट्‌टी पर चला गया और कवि इस कांड से क्षुब्ध हुआ। उन्होंने एक कविता लिखी और छपवाई। कविता में इस कांड की और मुख्यमंत्री की निंदा की।

किसी ने मुख्यमंत्री को यह कविता पढ़ा दी। अफसर तब तक छुट्‌टी से लौटकर आ गया। उसे मालूम हुआ तो वह घबड़ाया और उसने कवि को छुट्‌टी पर भेज दिया।

अफसर कवि ने एक प्रभावशाली नेता को पकड़ा। कहा- मुझे मुख्यमंत्री जी के पास ले चलिए। उनसे क्षमा दिला दीजिए। नेता उन्हें मुख्यमंत्री के पास ले गए। उन्होंने परिचय दिया ही था कि कवि ने मुख्यमंत्री के चरणों पर सिर रख दिया।

मुख्यमंत्री ने कहा- यह वह कवि नहीं हो सकते जिन्होंने वह कविता लिखी है।

-हरिशंकर परसाई

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