साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
 
वो राम राम कहलाते हैं (काव्य)       
Author:आराधना झा श्रीवास्तव

अवधपुरी से जनकपुरी तक
प्रेम की गंगा बहाते हैं
वो राम राम कहलाते हैं।
राम ही माला, राम ही मोती
मन मंदिर वही बनाते हैं।
वो राम राम कहलाते हैं। ॥1॥

कर्तव्यों के पाषाण पे घिसते
कर्म का चंदन अर्पित करते,
मर्यादा की डोर पकड़
जो अपना धर्म निभाते हैं।
वो राम राम कहलाते हैं ॥2॥

मानव जीवन कठिन डगर है
सब संभव विश्वास अगर है,
मन पंछी, इस पंछी को
सही राह वही दिखलाते हैं।
वो राम राम कहलाते हैं ॥3॥

हार हुई, कभी जीत हुई
कभी धाराएँ विपरीत हुई,
जीवन नैया, राम खेवैया
भवसागर पार लगाते हैं।
वो राम राम कहलाते हैं ॥4॥

-आराधना झा श्रीवास्तव

वीडियो प्रस्तुति का लिंक
https://youtu.be/aDX3XfbaFdc

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश