वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 
चिड़िया  (बाल-साहित्य )       
Author:त्रिलोक सिंह ठकुरेला

घर में आती जाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।।

तिनके लेकर नीड़ बनाती ,
अपना घर परिवार सजाती ,
दाने चुन चुन लाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।। 

सुबह सुबह जल्दी जग जाती ,
मीठे स्वर में गाना गाती ,
हर दिन सुख बरसाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।।

कभी नहीं वह आलस करती ,
मेहनत  से वह कभी न डरती ,
रोज काम पर जाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।। 

हँसना , गाना  कभी न  भूलो ,
साहस हो तो नभ को छूलो ,
सबको यह सिखलाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।।

- त्रिलोक सिंह ठकुरेला

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