वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 
मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी (बाल-साहित्य )       
Author:द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी

मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी
गुड़िया खूब सजाई।
किस गुड्डे के साथ हुई तय
इसकी आज सगाई?

मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी
कौन खुशी की बात है!
आज तुम्हारी गुड़िया प्यारी
की क्या चढ़ी बरात है?

मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी
गुड़िया गले लगाए
आँखों से यों आँसू ये क्यों
रह-रह बह-बह जाए!

मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी
क्यों ऐसा यह हाल है?
आज तुम्हारी गुड़िया प्यारी
जाती क्या ससुराल है!

-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

 

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