जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।
 
दूर गगन पर | गीत  (काव्य)       
Author:अनिता बरार | ऑस्ट्रेलिया

दूर गगन पर सँध्या की लाली
सतरंगी सपनों की चुनरी लहरायी
आँचल में भरकर तुझे ओ चंदा
चाँदनी बनकर मैं मुस्करायी
दूर गगन पर----

सँध्या के घूँघट में चंदा ये पुरनम,
सागर के आँचल में लहरों की धडकन
साँसों में छायी वीणा की सरगम
प्राणों में बिखरी मासूम शबनम
दूर गगन पर----

अलसाये यौवन पर छायी खुमारी
स्वपलिन आँखों में चाह तुम्हारी
चूड़ी खनखन प्रीत जगाती
पायल रुनझुन गीत सुनाती
दूर गगन पर----

आओ हम इक स्वर्ग बनाये
बाहों में आकर प्यास बुझाये
जीवन भर जो भूल न पाये
ऐसा गीत गले मिल गायें
दूर गगन पर----


- अनिता बरार
   ई-मेल: anita.barar@gmail.com
   (सी डी संकलन - दूरियाँ, 2000)

 

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश