समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।
 
पंछी का मन दुखता | बाल-कविता (बाल-साहित्य )       
Author:जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas

कुआं है गांव में
कुएं में घटता पानी।
सोचकर मछली को
है बड़ी हैरानी।

घास है जंगल में
घास भी मुरझाई।
सोचकर गायों की
आँखें भर आईं।

पेड़ है पर्वत में
पेड़ भी लो सूखता।
सोचकर पंछी का
मन बहुत दुखता।

-- जयप्रकाश मानस

[जयप्रकाश मानस की बाल कविताएं, यश पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स दिल्ली]

 

 

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