समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।
 
डर भी पर लगता तो है न | बाल कविता (बाल-साहित्य )       
Author:दिविक रमेश

चटख मसाले और अचार
कितना मुझको इनसे प्यार!
नहीं कराओ इनकी याद
देखो देखो टपकी लार।

माँ कहती पर थोड़ा खाओ
हो जाओगी तुम बीमार
क्या करूं पर जी करता हॆ
खाती जाऊं खूब अचार।

पर डर भी लगता तो है न
सचमुच पड़ी अगर बीमार
डॉक्टर जी कहीं पकड़ कर
ठोक न दें सूई दो-चार

-दिविक रमेश

[Children's Hindi Poems by Divik Ramesh]

 

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