उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।
 
स्वप्न सब राख की... (काव्य)       
Author:उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans

स्वप्न सब राख की ढेरियाँ हो गए,
कुछ जले, कुछ बुझे, फिर धुआँ हो गए।  

पेट की भूख से आग ऐसी लगी,
जल के आदर्श सब रोटियाँ हो गए।  

जब से चाणक्य महलों में रहने लगा,
मूल्य जीवन के बस कुर्सियाँ हो गए। 

लोग जो मुंह दिखाने के काबिल न थे,
आज अख़बार की सुर्खियाँ  हो गए।  

धन सफलता की जबसे कसौटी बना,
कल जो कोठे थे अब कोठियाँ  हो गए। 

जब सिफ़ारिश से सम्मान मिलने लगा, 
मूल्य प्रतिभा के दो कौड़ियाँ  हो गए। 

जो पतन के थे साधन सभी कल तलक,
आज वे प्रगति की सीढ़ियाँ  हो गए। 

जिनके सिद्धांत लोहे की दीवार थे,
आज वे मोम की मूर्तियाँ  हो गए। 

योग्यता जब पुरस्कृत नहीं हो सकी,
काव्य कुंठा की परछाइयाँ हो गए। 

वक्त ने 'हंस' को घाव जितने दिए,
वे ग़ज़ल-गीत की पंक्तियां हो गए।

- उदयभानु 'हंस', राजकवि हरियाणा
साभार-दर्द की बांसुरी [ग़ज़ल संग्रह]

 

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश