समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।
 
कैदी कविराय की कुंडलिया
 
 


गूंजी हिन्दी विश्व में स्वप्न हुआ साकार,
राष्ट्रसंघ के मंच से हिन्दी का जैकार।
हिन्दी का जैकार हिन्द हिन्दी में बोला,
देख स्वभाषा-प्रेम विश्व अचरज में डोला।
कह कैदी कविराय मेम की माया टूटी,
भारतमाता धन्य स्नेह की सरिता फूटी।।

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बनने चली विश्वभाषा जो अपने घर में दासी,
सिंहासन पर अंग्रेजी को लखकर दुनिया हांसी।
लखकर दुनिया हाँसी हिन्दी वाले हैं चपरासी,
अफसर सारे अंग्रेजीमय अवधी हों मद्रासी।
कह कैदी कविराय विश्व की चिन्ता छोड़ो,
पहले घर में अँग्रेज़ी के गढ़ को तोड़ो।

 

 

 
 
 
 
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